क्या इंपोर्ट ड्यूटी घटने से सस्ता हो पाएगा गेहूं?

सरकार के तमाम उपायों के बावजूद घट नहीं पा रही गेहूं की कीमत

क्या इंपोर्ट ड्यूटी घटने से सस्ता हो पाएगा गेहूं?

सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी गेहूं की कीमतें कम नहीं हो रहीं. इसके बाद गेहूं पर इंपोर्ट ड्यूटी घटाने की मांग जोर पकड़ने लगी है. लेकिन बड़ा सवाल है कि क्या देश में गेहूं इंपोर्ट की जरूरत है और इंपोर्ट ड्यूटी कम हुई तो क्या इसकी कीमतों में गिरावट आएगी? अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतें देखें तो ऑस्ट्रेलिया में भाव लगभग 300 डॉलर प्रति टन के करीब है और रूस में करीब 250 डॉलर प्रति टन के करीब. दुनियाभर में एक्सपोर्ट होने वाला अधिकतर गेहूं इन दोनों देशों से ही सप्लाई होता है. भारत में चेन्नई पोर्ट पर ऑस्ट्रेलिया से आने वाले गेहूं पर लगभग 30 डॉलर प्रति टन का मालभाड़ा लगता है और रूस से आने वाले गेहूं पर भी 28-30 डॉलर मालभाड़े का खर्च आता है. यानी बिना इंपोर्ट ड्यूटी के चेन्नई पोर्ट पर ऑस्ट्रेलियाई गेहूं 27000 रुपए प्रति टन पर भारत पहुंचेगा और करीब 23000 रुपए प्रति टन के भाव पर रूस का गेहूं आएगा, बशर्ते डॉलर का भाव 82 रुपए हो.

कितना है भाव?
भारतीय बाजार में कीमतों की बात करें तो दिल्ली में भाव 25000 रुपए प्रति टन के करीब है, यानी बिना इंपोर्ट ड्यूटी के रूस का गेहूं भारत में सस्ता पड़ सकता है. लेकिन भारत में गेहूं आयात पर 40 फीसद शुल्क है, और रूस से इस शुल्क पर गेहूं आयात हुआ तो कीमतें प्रति टन 10 हजार रुपए और बढ़ जाएगी और उस स्थिति में रूस का गेहूं चेन्नई पोर्ट पर करीब 35000 रुपए में पहुंचेगा. लेकिन यह उस स्थिति में होगा, रूस में गेहूं का भाव नहीं बढ़ेगा. अगर भारत सरकार की तरफ से गेहूं पर आयात शुल्क घटाने या खत्म करने की कोई घोषणा होती है, तो उसका असर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों पर पड़ेगा और उस स्थिति में रूस के गेहूं की कीमतें भी बढ़ सकती है. ऐसी स्थिति में रूस का गेहूं भी भारतीय बाजार में महंगा पड़ सकता है.

पूरा नहीं हो पाया खरीद लक्ष्य
इस साल देश में गेहूं की उपज तो रिकॉर्ड है, लेकिन सरकार ने किसानों से जितनी गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा था वह करीब 80 लाख टन कम रहा है. सरकार का लक्ष्य 342 लाख टन का था और सरकारी एजेंसियां सिर्फ 262 लाख टन की खरीद कर पाई हैं. पिछले साल किसानों से गेहूं का भाव 3000 रुपए प्रति क्विंटल से ऊपर देखा है, ऐसे में संभावना है कि इस साल किसानों ने सरकार को समर्थन मूल्य पर गेहूं बेचने में ज्यादा रुचि नहीं ली है, जिस वजह से सरकार की खरीद पूरी नहीं हो पाई.

ऊपर से सरकार के पास पुरानी फसल का गेहूं भी कम है और केंद्रीय पूल में स्टॉक भी सीमित है. ऐसी स्थिति में अगर कीमतों को काबू करने के लिए सरकार अपने स्टॉक से खुले बाजार में गेहूं बेचना चाहेगी. तो भी बिक्री सीमित मात्रा में ही होगी. 12 जून को सरकार ने गेहूं पर स्टॉक लिमिट लगाने के साथ घोषणा की थी कि खुले बाजार में 15 लाख टन गेहूं की बिक्री होगी. सरकार की इस घोषणा के अगले दिन तो कीमतें प्रति क्विंटल 100 रुपए टूट गई लेकिन अब फिर से उसी स्तर पर पहुंच गई हैं जहां पर 12 जून से पहले थीं.

Published - June 22, 2023, 07:58 IST