कमजोर वैश्विक संकेतों के कारण भारतीय शेयर बाजार सोमवार को गिरावट के साथ खुले. दिन के कारोबार के दौरान प्रमुख सूचकांकों- सेंसेक्स और निफ्टी में निचले स्तर से हल्की रिकवरी देखने को मिली. अमेरिका में मंदी का आहट के सदमे से बाजार उबर न सका. नतीजतन सेंसेक्स 2222.55 अंक टूट कर 78,759.40 और निफ्टी 662.10 अंकों की गिरावट के साथ 24055.60 के स्तर पर बंद हुआ.
सेंसेक्स में शामिल 30 कंपनियों में से सिर्फ दो शेयर ऐसे थे जो हरे निशान में बंद हुएत्र इनमें हिंदुस्तान यूनिलीवर 0.97 फीसदी की तेजी के साथ 2719.70 रुपये और नेस्ले इंडिया 0.75 फीसदी की तेजी के साथ 2513 रुपये पर बंद हुआ. जिन शेयरों में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई उनमें टाटा मोटर्स -7.32 फीसदी, अदानी पोर्ट्स -5.93 फीसदी, टाटा स्टील -5.31 फीसदी, एसबीआई -4.34 फीसदी, पावरग्रिड -4.19 फीसदी, मारुति सुजुकी -4.17 फीसदी, जेएसडब्ल्यू स्टील -4.02 फीसदी, इंफोसिस -3.84 फीसदी और एल एंड टी -3.77 फीसदी शामिल हैं.
सोमवार को सरकारी कंपनियों के शेयरों (PSU Stocks) में भारी बिकवाली देखने को मिली, जिनमें हाल के दिनों में अच्छी-खासी तेजी देखने को मिली थी. एनबीसीसी 7.95 फीसदी, ओएनजीसी 6.39 फीसदी, ऑयल इंडिया लिमिटेड 5.45 फीसदी, स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड, 6.45 फीसदी, एलआईसी 5.98 फीसदी और कोचिन शिपयार्ड के शेयर 5 फीसदी की गिरावट के साथ बंद हुए. रेलवे स्टॉक्स की बात करें तो IRFC 6.73 फीसदी, RVNL 6.61 फीसदी, IRCON 6.47 फीसदी और रेलटेल 6.19 फीसदी टूट कर बंद हुए.
सेक्टोरल इंडेक्स की बात करें तो सोमवार को निफ्टी मेटल सबसे अधिक 4.82 फीसदी की गिरावट के साथ बंद हुआ. निफ्टी मीडिया 4.58 फीसदी और निफ्टी रियल्टी 4.32 फीसदी की गिरावट के साथ बंद हुए. जिन सेक्टर्स में सबसे कम गिरावट आई उनमें निफ्टी एफएमसीजी -0.32 फीसदी और निफ्टी फार्मा -1.46 फीसदी शामिल हैं.
विश्लेषकों की मानें तो जापान के शेयर बाजार सूचकांक निक्केई में 12 फीसदी से अधिक की गिरावट और मध्य-पूर्व के भू-राजनीतिक तनावों के कारण बाजार धारणा प्रभावित हुई. एशियाई बाजारों में जापान के अलावा, सियोल, टोक्यो, शंघाई और हांगकांग के बाजार भी भारी गिरावट के साथ बंद हुए.
सोमवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 31 पैसों की कमजोरी के साथ अब तक के सबसे निचले स्तर 84.03 (अस्थाई) पर फिसल आया. फॉरेक्स ट्रेडर्स की मानें तो भारतीय शेयर बाजार में आए भारी गिरावट और विदेशी निवेशकों की निकासी रुपये की गिरावट की सबसे बड़ी वजह रही.
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