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क्या होते हैं ETF, म्यूचुअल फंड से कितने अलग?

निवेशकों में क्यों बढ़ रहा एक्सचेंज ट्रेडेड फंड यानी ETF का क्रेज, म्यूचुअल फंड से कितने अलग हैं ETF, कैसे ज्यादा डायवर्सिफाइड होते हैं ये फंड, ETF में निवेश पर कैसे कम आती है लागत?

  • हिमाली पटेल
  • Last Updated : January 5, 2024, 16:51 IST
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राजीव म्यूचुअल फंड में तो निवेश करते आए हैं लेकिन इन दिनों वो एक्सचेंज ट्रेडेड फंड या ETF के बारे में जानकारी जुटा रहें हैं. रिसर्च करने पर पता चला कि ये भी एक तरह के म्यूचुअल फंड ही है लेकिन स्टॉक मार्केट में ट्रेड होते हैं और ये भी मालूम पड़ा कि इसपर कंपनियां निवेशक से कम खर्चा लेती हैं यानी इसका एक्सपेंस रेशियो पैसिव फंड की तर्ज पर सस्ता है. ETF की सबसे खास बात राजीव को लगी कि स्टॉक की तुलना में उसमें जोखिम भी कम है.राजीव उन निवेशकों में शामिल हैं जिनकी रूचि ETF में बढ़ रही है. यही बात नवंबर 2023 में Mirae Asset Mutual Fund के “Decoding ETF Perceptions” नाम के सर्वे में आई. इस सर्वे को नीचे दिए गए लिंक के जरिए डाउनलोड कर सकते हैं. https://innowave2023webinar.virtualconsole.in/

इस सर्वे में मेट्रो और टियर-2 शहर के 15 शहरों के दो हजार से ज्यादा निवेशकों को शामिल किया गया.. सर्वे में शामिल 60 फीसद लोगों ने दावा किया कि उन्हें ETF के बारे में अच्छी समझ है. ETF मार्केट में बढ़े रूझान के दो अहम कारण हैं पहला लिक्विडिटी यानी ईटीएफ को मार्केट ट्रेडिंग अवधि के दौरान किसी भी समय बेचा जा सकता है और दूसरा इनकी कम कॉस्ट यानी लो एकसपेंस रेशियो. लेकिन म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री का मानना है कि ETF की तरफ लोगों का झुकाव तो बढ़ा है इसके बावजूद छिपे हुए जोखिम और उचित जानकारी की कमी सबसे बड़ी रुकावट है. तो चलिए समझते हैं ETF क्या हैं और ये कैसे काम करते हैं और ये म्यूचुअल फंड से कैसे अलग है?

एक्सचेंज ट्रेडेड फंड जिसे आमतौर पर ETF के नाम से जाना जाता है. ये निवेश का एक तरीका है, जिसमें सिक्योरिटीज के एक सेट यानी अलग-अलग कंपनियों के शेयरों या अलग-अलग तरह के बॉन्ड में निवेश किया जाता है.. ETF शेयरों की तरह ही स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेड करते हैं. ईटीएफ एक पैसिव इन्वेस्टमेंट है, जो आमतौर पर किसी खास इंडेक्स, सेक्टर, थीम या कमोडिटीज जैसे एसेट और बॉन्ड्स को ट्रैक करता है. ETF का प्रदर्शन इन इंडेक्स जैसा ही होता है. उदाहरण के लिए कई ईटीएफ निफ्टी, सेंसेक्स, निफ्टी हेल्थकेयर इंडेक्स या बीएसई 500 जैसे इंडेक्स को ट्रैक करते हैं. और उन्हीं शेयरों में निवेश करते हैं, जो किसी विशेष इंडेक्स में शामिल होते हैं और वो भी उसी अनुपात है. ETF में सिर्फ इक्विटी ही नहीं बल्कि डेट और गोल्ड विक्लपों के भी तमाम फंड होते हैं.

मिराए एसेट एमएफ में ETF प्रोडक्ट के प्रमुख सिद्धार्थ श्रीवास्तव के मुताबिक, ‘लोग ईटीएफ में इसलिए निवेश कर रहे हैं, जिससे कि उन्हें बाजार की तेजी का फायदा मिल सके. इसके अलावा ईटीएफ की लागत कम होती है, साथ ही इसमें बड़ा जोखिम भी बहुत कम होता है. यही कारण है कि ईटीएफ काफी तेजी से प्रचलित हो रहे हैं.

सिद्धार्थ बताते हैं कि, ‘2024 में बाजार को देखकर अच्छे संकेत दिख रहे हैं. आर्थिक आंकड़ों की बात करें या फिर कंपनियों की कमाई के जो रुझान दिखाई दे रहे हैं, उसे देखकर लग रहा है कि बाजार बेहतर कारोबार करेगा. भले ही बाजार 2023 जैसी तेजी न दोहराए. लेकिन लंबी अवधि में भारतीय बाजार काफी बेहतर दिखाई दे रहे हैं.’

देश में आज कई तरह के ईटीएफ मौजूद हैं, जैसे गोल्ड ईटीएफ, सिल्वर ईटीएफ, डेट ईटीएफ, इक्विटी ईटीएफ, इंडेक्स आदि. आप ETF की यूनिट को डीमैट अकाउंट में वैसे ही रख सकते हैं जैसे शेयर या दूसरी सिक्योरिटीज को रखते हैं. ईटीएफ यूनिट की कीमत डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करती है. जहां तक टैक्स की बात है तो इक्विटी ईटीएफ पर शेयर या इक्विटी म्यूचुअल फंड की तरह ही टैक्स लगता है. ईटीएफ को 12 महीने से पहले बेचने पर 15 फीसद टैक्स है. अगर आप ETF को एक साल रखने के बाद बेचते हैं तो एक वित्त वर्ष में 1 लाख रुपए से ऊपर के मुनाफे पर 10 फीसदी की दर से लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स है. एक लाख रुपए तक के लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर कोई टैक्स नहीं है. गोल्ड, डेट या इंटरनेशनल ईटीएफ समेत अन्य ईटीएफ से हुए मुनाफे पर इनकम टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स की दरें लागू होंगी. होल्डिंग पीरियड चाहे कुछ भी हो.

टैक्स के बाद अब बात रिटर्न की. इंडेक्स ETF ने पिछले एक और तीन साल में डबल डिजिट यानी दहाई अंक में रिटर्न दिया है. वहीं, गोल्ड ETF ने एक साल में 12.25 फीसद जबकि 5 साल में करीब 14 फीसद का औसत रिटर्न दिया है. ये आंकड़े 19 दिसंबर 2023 तक के हैं.

Average ETF Returns (%)

ETF Categories

1 Year

3 Years

5 Years

Debt

7.22

4.22

5.89

Gold

12.25

6.72

13.96

Index

23.59

19.02

15.27

Silver

5.88

Source: Ace mutual fund; Returns as on 19-Dec-2023; Less than 1 Year returns are Annualised and above one-year CAGR

ETF ज्यादा डायवर्सिफाइड होते हैं यानी इनमें अलग-अलग शेयरों में निवेश होता है इसलिए ये इंडिविजुअल इक्विटी यानी सिंगल शेयर में निवेश की तुलना में कम जोखिम भरे होते हैं. ETF में ट्रैकिंग एरर एक महत्वपूर्ण टर्म है… ट्रैकिंग एरर बेंचमार्क इंडेक्स के रिटर्न और ETF रिटर्न के बीच का अंतर है. दरअसल, यह ईटीएफ और इंडेक्स के परफॉर्मेंस के बीच के अंतर को दिखाता है.

जिस ETF की ट्रैकिंग एरर कम से कम होगी वो थोड़ा बेहतर होगा. कम ट्रैकिंग एरर का आपके रिटर्न पर कम असर होता है. ऐसे में निवेशकों को ऐसे ETF चुनने चाहिए जिनका ट्रैकिंग एरर कम से कम हो.

ETF or Mutual funds? अब बात करते हैं ETF किस तरह से म्यूचुअल फंड से अलग हैं. ईटीएफ स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेड करते हैं और निवेशक यहां से इन्हें खरीद और बेच सकते हैं. वहीं, म्यूचुअल फंड की यूनिट खरीदने या बेचने के लिए फंड हाउस को रिक्वेस्ट देनी होती है.

म्यूचुअल फंड की सिंगल यूनिट की कीमत NAV से पता चलती है. ईटीएफ में एक्टिव मैनेजमेंट की जरूरत नहीं होती है क्योंकि ये किसी खास इंडेक्स के परफॉर्मेंस को ट्रैक करते हैं और उसी तरह परफॉर्म करने की कोशिश करते हैं. यही वजह है कि ETF निवेश में कॉस्ट यानी लागत कम होती है. म्यूचुअल फंड के केस में, फंड मैनेजमेंट या फंड मैनेजर निवेशकों की ओर से निवेश से जुड़े फैसले लेता है. इसके चलते फंड मैनेजमेंट कॉस्ट बढ़ जाती है.

म्यूचुअल फंड सालाना करीब डेढ़ से 3 फीसद फीस चार्ज करते हैं जबकि ETF 0.10 फीसद के आसपास चार्ज करते हैं, जो म्यूचुअल फंड से काफी कम है. ETF में कॉस्ट कम होने से लंबी अवधि में रिटर्न काफी बेहतर हो जाते हैं. ETF में किसी तरह का मिनिमम होल्डिंग पीरियड नहीं है. निवेशक किसी भी समय इसे बेच और खरीद सकता है. वहीं, इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम यानी ELSS जैसे म्यूचुअल फंड में तीन साल का लॉक-इन पीरियड होता है इस टाइम पीरियड के अंदर आप अपने निवेश से बाहर नहीं आ सकते हैं… कई म्यूचुअल फंड स्कीम में एग्जिट लोड होता है. आखिरी जरूरी बात ETF में निवेश करने के लिए डीमैट अकाउंट जरूरी है जबकि म्यूचुअल फंड में बिना डीमैट अकाउंट के ही निवेश होता है.

ETF ऐसे निवेशकों के लिए पसंदीदा विकल्प बन रहा है, जो इन्वेस्टमेंट कॉस्ट कम रखते हुए वेल्थ क्रिएशन करना चाहते हैं. आमतौर पर निवेशक इसलिए म्यूचुअल फंड की तुलना में ETF में निवेश करने की सोचते हैं क्योंकि इसमें चार्ज कम है. याद रहे चाहे म्यूचुअल फंड हो या ईटीएफ दोनों के फायदे और नुकसान हैं. इसिले अपनी इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटजी और जोखिम उठाने की क्षमता के आधार पर इनमें से किसी को चुनना चाहिए.

Published - January 5, 2024, 02:43 IST

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