केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) ने नियोक्ताओं को निर्देश दिया है कि उन्हें वित्त वर्ष 2021-22 से पीएफ खाते में दो अलग-अलग खाते बनाकर रखने होंगे. इसका उद्देश्य कर योग्य और गैर-कर योग्य ईपीएफ योगदान को अलग-अलग करना है. यह कदम बजट में घोषित प्रावधान को लागू करने के लिए है, जिसके तहत अप्रैल 2021 से 2.5 लाख रुपये से अधिक के पीएफ योगदान पर अर्जित ब्याज आय पर कर लगाने की बात कही गई थी.
हालांकि, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बाद में 2.5 लाख रुपये की सीमा को बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दिया था. वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा था कि यह प्रावधान उन मामलों को ध्यान में रखते हुए डाला गया था, जहां कुछ कर्मचारी इन फंडों में बड़ी मात्रा में योगदान दे रहे थे और कर-मुक्त आय अर्जित कर रहे थे, क्योंकि इस आय को अधिनियम की धारा 10 के खंड (11) और खंड (12) के तहत कर से छूट दी गई है.
मौजूदा नियमों के मुताबिक कोई कर्मचारी मूल वेतन और महंगाई भत्ते का 12 फीसदी तक ईपीएफओ में निवेश कर सकता है. इतना ही योगदान नियोक्ता द्वारा किया गया है. एक प्रावधान स्वैच्छिक अंशदान का भी है, जहां इस सीमा को 100 फीसदी तक बढ़ाया जा सकता है. EPF की दरें इस समय 8.5% हैं, जो साल 2018-2019 की 8.65% से कम हैं.
मोटे तौर पर, ईपीएफ पर ब्याज आय कर मुक्त है और 5 साल की अवधि के बाद निकासी पर कोई कर नहीं लगाया जाता है. कर-मुक्त आय अर्जित करने के लिए ईपीएफ में बड़ी रकम का योगदान करने वाले उच्च आय वाले लोगों को सिस्टम का दुरुपयोग करने से रोकने के लिए यह मौजूदा नियम लागू किया गया है. हालांकि, यह अब नियोक्ताओं के लिए एक अनुपालन बोझ है, लंबे समय में, यह उन कर्मचारियों द्वारा दुरुपयोग की जांच करने में मदद करेगा, जो बड़ी जमा राशि कर रहे थे. यह कदम सरकार के लिए अधिक राजस्व अर्जित कर सकता है.