फाइनेंशियल इनक्लूजन शब्द गुजरे कई वर्षों से वित्तीय ईकोसिस्टम के केंद्र में बना हुआ है और कोविड के बाद के भारत में इसकी अहमियत और भी ज्यादा बढ़ गई है. हालांकि, जनधन प्रोग्राम के जरिए वित्तीय समावेश को बड़े तौर पर बढ़ाने की कोशिश हुई, लेकिन इसे अपनी मंजिल तक पहुंचने में अभी वक्त लगेगा. हर परिवार के बैंक खाते से लक्ष्य को बदलकर हर शख्स के बैंक खाते का मुकाम हासिल किया जाना है.
साथ ही, जनधन खातों के साथ मिलने वाले ATM कम डेबिट कार्ड को लेकर भी अलग-अलग राज्यों में अंतर दिखाई देता है. वित्त वर्ष 2020-21 के आखिर में जनधन खातों के लद्दाख में करीब 90 फीसदी लाभार्थियों के पास डेबिट कार्ड थे. जबकि ये आंकड़ा मिजोरम में महज 35.14 फीसदी है. इस मामले में राष्ट्रीय औसत 73 फीसदी से थोड़ा सा ज्यादा है. डिजिटल इंडिया का लक्ष्य पूरा करने के लिहाज से ये शायद ही कारगर साबित हो.
इन कार्ड्स का कवरेज अहम है क्योंकि इससे लोगों को ATM और ऑनलाइन ट्रांजैक्शंस करने की ताकत मिलती है. ये बड़ी बात है कि RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने एक बार फिर से गुरुवार को फाइनेंशियल इनक्लूजन की अहमियत पर जोर दिया है. उन्होंने कहा है कि देश में गैर-बराबरी और गरीबी को दूर करने में ये बेहद अहम है.
इस मामले में अन्य खामियां भी हैं. महामारी ने ये देश की बड़ी आबादी के लिए जीवन बीमा कवर की जरूरत को दिखाया है. मौजूदा वक्त में ये कवरेज 4 फीसदी ही है. फाइनेंशियल साक्षरता मिशन में इंश्योरेंस की जरूरत को भी शामिल किया जाना चाहिए.
तेजी से बढ़ रहे फिनटेक सेक्टर को भी आबादी के हाशिये पर मौजूद तबके की जरूरतों को पूरा करने पर ध्यान देना होगा. अगर आबादी का ये सेगमेंट अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिहाज से बनाए गए निवेश ठिकानों तक पहुंच पाएगा तो इससे आखिरकार फाइनेंशियल इनक्लूजन का मकसद पूरा होगा.
ये अच्छी बात है कि फाइनेंशियल इनक्लूजन अभी भी RBI की प्राथमिकता में है और जल्द ही ये इस पर एक इंडेक्स पब्लिश करने वाला है. लेकिन, इसे हकीकत बनाने के लिए हर स्टेकहोल्डर को इसमें शामिल करना चाहिए.
जनधन खातों को खोलने के मामले में निजी सेक्टर के बैंक सरकारी बैंकों के मुकाबले काफी अंतर से पीछे हैं. हाशिये पर मौजूद तबके के साथ किए गए वादे को हमें पूरा करना होगा.