भारत का टोक्यो ओलंपिक्स में सात मेडल जीतना दुनिया के लिए शायद कोई खास बात नहीं होगी, मगर देश में स्पोर्टिंग में बड़े बदलाव लाने के लिए इस मौके को पूरी तरह भुनाया जा सकता है. हमारे होनहार खिलाड़ियों के लाजवाब प्रदर्शन की वाहवाही भर करने के बजाय उन्हें वित्तीय और इमोशनल सहारा देने की जरूरत है. कई चुनौतियों से होकर गुजरने के बाद उन्होंने दुनिया के बेहतरीन खिलाड़ियों को पछाड़ा है.
भारतीय सेना उन्हें ऐसा सपोर्ट लंबे समय से देती आ रही है. विश्व स्तर के स्पोर्टपर्सन तैयार करने में उसका योगदान जारी है. मगर अब समय आ गया है कि और भी लोग इस जिम्मेदारी हो संभालें. सरकार को अभी बने सकारात्मक माहौल को बनाए रखने के लिए तैयारियों में जुट जाना चाहिए.
हालांकि, हमारे देश में चुनौतियां कई हैं. टोक्यो ओलंपिक्स में जबरदस्त प्रदर्शन दिखाने वाली भारतीय हॉकी टीम की खिलाड़ी वंदना कटारिया के परिवार पर की गईं जातिगत टिप्पणियां इस बात को दर्शाती हैं.
उत्तराखंड सरकार ने कटारिया को ‘बेटी बचाओ’ आंदोलन का चेहरा बनाकर ऐसे लोगों को करारा जवाब दिया है. खिलाड़ियों को इज्जत दी जानी चाहिए. वे बच्चों के रोलमॉडल बन सकते हैं.
इसी तरह सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने नीरज चोपड़ा के प्रदर्शन की तुलना 1983 की वर्ल्ड कप जीत से की है. उन्हें ऐसी तुलना करने का हक नहीं है. हर जीत की अपनी अहमियत होती है. उसका जश्न मनाया जाना चाहिए. वर्ल्ड कप की जीत की तरह नीरज चोपड़ा का गोल्ड भी युवाओं में जोश भरेगा. ट्रैक और फील्ड स्पोर्ट्स को आगे ले जाने में मदद करेगा.
कठिनाइयों के बावजूद मिल्खा सिंह, पीटी ऊषा, अभिनव बिंद्रा और नीरज चोपड़ा जैसे सितारे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाकर चमके हैं. अगर हमारे खिलाड़ियों को जमीनी स्तर पर जरूरी सपोर्ट मिलने लगे, तो सोचिए किस स्तर पर उनका दबदबा बढ़ेगा.