भारत सस्ती और क्वालिटी युक्त मेडिकल सर्विसेज के चलते मेडिकल टूरिज्म (medical tourism) एक बड़ा सेक्टर बन चुका है. हर साल दुनिया के 100 से भी ज्यादा देशों के लोग भारत आकर इलाज करवाते हैं. इसी टूरिज्म को बढ़ाने के लिए सरकार ने कोविड-19 महामारी काल में 18 गुना ज्यादा बजट खर्च किया है. साल 2017 के बाद 2020 में सरकार ने मेडिकल टूरिज्म (medical tourism) को बढ़ावा देने के लिए सबसे ज्यादा बजट खर्च किया है. शायद, इसलिए साल 2020 में कुछ हद तक विदेशों से आए मरीजों की संख्या भी बढ़ी है.
27 जुलाई को राज्यसभा में पर्यटन मंत्रालय ने जानकारी दी है कि मेडिकल टूरिज्म (medical tourism) को बढ़ावा देने के लिए सरकार हर साल मेला, मेडिकल कॉन्फ्रेंस, रोड शो, वेलनेस कॉन्फ्रेंस आदि पर मार्केट डेवलपमेंट असिस्टन्स (एमडीए) के तहत बजट खर्च करती है. साल 2017-18 के दौरान सरकार ने इस पर 37.75 लाख रुपये का बजट खर्च किया था जोकि साल 2018-19 में घटकर 17.20 लाख रुपये रह गया. वहीं साल 2019-20 में इस बजट में भारी गिरावट देखने को मिली और महज 1,40,311 रुपये ही खर्च किए गए लेकिन साल 2020 में जब कोरोना महामारी शुरू हुई तो सरकार ने 25,38,679 रुपये खर्च किए.
मंत्रालय के अनुसार भारत के मेडिकल टूरिज्म (medical tourism) में सबसे बड़ा योगदान बांग्लादेश का है. यहां से भारत आकर इलाज कराने वाले मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है. साल 2017 से लेकर 2020 के बीच बांग्लादेश से आने वाले मरीजों में सबसे अधिक बढ़ोतरी हुई है. साल 2017 में 44.79 फीसदी मरीज बांग्लादेश से आए थे जो कि साल 2020 तक बढ़कर 54.33 फीसदी हो गए. वहीं इराक, मालदीव, अफगानिस्तान, ओमान और तंजानिया जैसे देशों से मरीजों की संख्या कम हुई है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक भारत का मेडिकल टूरिज्म (medical tourism) सेक्टर तेजी से ग्रोथ कर रहा है लेकिन इसे चीन, रूस, अमेरिका, फ्रांस जैसे बड़े देशों से जोड़ने की बहुत जरूरत है. इससे देश की मेडिकल इकोनॉमी को भी फायदा होगा.
मंत्रालय के अनुसार भारत सरकार अभी 166 देशों के लिए ई वीजा उपलब्ध करा रही है जहां से मरीज भारत आकर इलाज कराना चाहते हैं. इसके अलावा विश्व यात्रा मार्ट लंदन, आईटीबी, बर्लिन, अरेबियन यात्रा मार्ट जैसे इंटरनेशनल स्टेज पर भारत के मेडिकल टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं.
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