अगर आप म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं तो जान लें कि म्यूचुअल फंड कंपनियां स्कीम से जुड़े बदलावों की जानकारी साझा करने के लिए आपको ईमेल या SMS भेजती हैं. कई बार कंपनी आपको म्यूचुअल फंड स्कीमों के मर्जर की सूचना देते हैं जिसे सुनते ही अक्सर निवेशक घबरा जाते हैं. वे जल्दबाजी में अपने निवेश को रिडिम यानी भुनाना शुरू कर देते हैं लेकिन, मर्जर की ख़बर से आपको डरने की ज़रूरत नहीं है. इस दौरान निवेशकों को ये ध्यान रखना चाहिए कि मर्जर से म्यूचुअल फंड स्कीम के निवेश उद्देश्यों, एक्सपेंस रेश्यो, रिस्क प्रोफाइल और टैक्स के फ्रंट पर भी बदलाव आ सकता है.
क्या होता है म्यूचुअल फंड मर्जर?
मर्जर के तहत म्यूचुअल फंड स्कीम का कंपनी की मौजूदा किसी स्कीम में विलय किया जाता है. कई बार दो स्कीमों को जोड़कर एक नई स्कीम बनाने के लिए विलय किया जाता है. हाल ही में, Aditya Birla Sun Life Mutual Fund ने विलय का फैसला किया. इसके तहत कंपनी ने Aditya Birla Sun Life CRISIL IBX AAA मार्च 2024 इंडेक्स फंड का Aditya Birla Sun Life Corporate Bond Fund में विलय किया है. हाल ही में हुए सभी म्यूचुअल फंड स्कीम्स के मर्जर 2 अप्रैल 2024 से प्रभावी होंगे, हालांकि विलय के बाद मौजूदा स्कीम्स के नाम और बाकी विशेषताएं नहीं बदलेंगी और न ही यूनिट होल्डर्स के हितों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.
स्कीम्स का विलय क्यों होता है?
म्यूचुअल फंड हाउस कई वजह से म्यूचुअल फंड स्कीम्स का विलय करते हैं. इनमें मैनेजमेंट लागत कम करना, किसी स्कीम को आसान बनाना, पोर्टफोलियो मैनेजमेंट बढ़ाना और स्कीम्स के ऑपरेशंस को सरल बनाना आदि वजह शामिल हैं.
एग्जिट लोड का मिलता है विकल्प
म्यूचुअल फंड हाउसेज़ को स्कीम्स के मर्जर, असेट अलोकेशन, स्कीम के उद्देश्य, टैक्स एप्लीकेशंस और इससे जुड़ी बाकी जानकारियां निवेशकों को ईमेल और SMS के ज़रिए. लिखित तौर पर देनी चाहिए. अगर आपके पास किसी म्यूचुअल फंड कंपनी का मर्जर से जुड़ा मैसेज आता है तो इससे घबराने की जरूरत नहीं है. मार्केट रेगुलेटर सेबी के नियमों के मुताबिक म्यूचुअल फंड हाउस को निवेशकों को बिना किसी एग्जिट लोड के निवेश से बाहर निकलने का मौका देना चाहिए. कुछ मामलों में निवेश स्कीम से बाहर निकलने पर कंपनियां कुछ चार्ज वसूलती हैं जिसे एक्जिट लोड कहते हैं. सेबी के नियमों के मुताबिक फंड हाउस को कम से कम 30 दिन की एग्जिट लोड-फ्री विंडो देनी ज़रूरी है. इस दौरान निवेशक कॉन्सेंट फॉर्म यानी सहमति पत्र जमा करके अपना फैसला बता सकते हैं…
Finwisor के फाउंडर और CEO जय शाह की सलाह है कि निवेशकों को कुछ बदलावों पर ध्यान देना चाहिए.. जैसे कि नई स्कीम के उद्देश्य, फीस स्ट्रक्चर और टैक्स इंप्लीकेशंस. साथ ही, फंड मैनेजर्स के ट्रैक रिकॉर्ड पर भी नज़र रखनी चाहिए. यदि निवेशक विलय की हुई स्कीम में निवेश नहीं करना चाहते हैं तो वो इसे 30 दिन में भुना भी सकते हैं. ऐसे मामलों में कोई एग्ज़िट लोड लागू नहीं होता.
मर्जर के समय क्या करें निवेशक?
मर्जर के उद्देश्यों को ध्यान से पढ़ें. टैक्स इंप्लीकेशंस पर रिसर्च करें, आपके पोर्टफोलियो पर कितना असर पड़ सकता है, एक्सपेंस रेश्यो यानी निवेश पर खर्च की लागत की जांच करें. फंड हाउस की नई घोषणाओं को लेकर अपडेट रहें. फंड मैनेजर के ट्रैक रिकॉर्ड की जांच करें. नई स्कीम के उद्देश्य, वित्तीय लक्ष्यों के अनुरूप हैं या नहीं, इस बारे में जान लें.