लंबी अवधि के वित्तीय उद्देश्यों को पूरा करने और अच्छी-खासी पूंजी खड़ा करने के लिए म्यूचुअल फंड्स में निवेश एक अच्छा तरीका माना जाता है. ये महंगाई को मात देने वाला रिटर्न देने की ताकत रखते हैं. कई बार म्यूचुअल फंड्स में निवेश को लेकर लोगों का अनुभव काफी खराब होता है. आइए जानते हैं कि लोग म्यूचुअल फंड इन्वेस्टमेंट में कहां गलती करते हैं, जिससे उन्हें ऊंचा रिटर्न नहीं मिल पाता है.
बिना स्कीम को समझे निवेश करना
म्यूचुअल फंड स्कीम या प्रोडेक्ट को समझे बिना निवेश नहीं करें. उदाहरण के लिए, इक्विटी म्यूचुअल फंड लॉन्ग टर्म यानी लंबी अवधि के लिए होते हैं, जबकि निवेशक आमतौर पर छोटी अवधि यानी शॉर्ट टर्म में अच्छे रिटर्न की चाहत रखते हैं. ऐसे में इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेश करने पर नुकसान हो सकता है. म्यूचुअल फंड में लंबी अवधि के निवेश का नजरिया रखना ज्यादा समझदारी है. खासकर तब जब आपका उद्देश्य बड़ी पूंजी खड़ी करनी हो. कम से कम 5 से 7 साल के लिए निवेश रखना चाहिए. इससे ज्यादा समय के लिए निवेश करना और फायदेमंद हो सकता है.
सही रकम निवेश नहीं करना
म्यूचुअल फंड में रेंडम इन्वेस्टमेंट आम बात है. रेंडम इन्वेस्टमेंट का मतलब बिना किसी फाइनेंशियल गोल के अपने मनमाफिक कोई भी रकम जमा करना है. ऐसे केस में, हो सकता है कि निवेश की गई रकम उम्मीद के मुताबिक रिटर्न नहीं दे. उदाहरण के लिए, आपका 20 साल में एक करोड़ रुपए जोड़ने का टारगेट है और हर महीने 1,000 रुपए निवेश कर रहे हैं तो अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाएंगे. एक करोड़ जोड़ने के लिए आपकी मंथली SIP 10,109 रुपए होनी चाहिए. यहां अनुमानित रिटर्न सालाना 12 फीसदी है. रिटर्न में घट-बढ़ संभव है. वित्तीय लक्ष्य को पूरा करने के लिए जरूरी रकम का पता होना और निवेश करना जरूरी है.
बार-बार रिडम्प्शन न करें
म्यूचुअल फंड में निवेश करने वाले लोग कई बार जरूरत पड़ने पर म्यूचुअल फंड से रिडम्प्शन कर लेते हैं यानी पैसे निकाल लेते हैं. बार-बार म्यूचुअल फंड से पैसा निकालने से निवेश पर कम्पाउडिंग रिटर्न का पूरा फायदा नहीं मिल पाता है क्योंकि रिडम्प्शन अमाउंट पर इसका फायदा नहीं मिल पाएगा. इसका नतीजा ये होता है कि आप रिडम्प्शन के बाद खरीदी यूनिट से अपने फाइनेंशियल गोल को पूरा नहीं कर पाते हैं. इस तरह के काम आपकी फाइनेंशियल प्लानिंग को नुकसान पहुंचाते हैं.
बाजार के उतार-चढ़ाव से घबरा जाना
शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव का जोखिम रहता है. इससे घबराकर कई लोग म्यूचुअल फंड से पैसे निकाल लेते हैं या फिर निवेश रोक देते हैं. बाजार में गिरावट वास्तव में लॉन्ग टर्म वेल्थ क्रिएशन का मौका देती है. गिरावट के बीच निवेश जारी रखने से उसी अमाउंट में आपको ज्यादा यूनिट मिलेंगे, क्योंकि प्रति यूनिट कॉस्ट नीचे आ जाएगी. बाजार में तेजी आने पर यह आपके रिटर्न को बढ़ाएगा.
बिना गोल या प्लान के निवेश
बिना किसी फाइनेंशियल गोल के निवेश करना शायद सबसे बड़ी गलती है. निवेश की गई पाई-पाई की रकम के लिए फाइनेंशियल गोल होना चाहिए. इससे निवेशकों को अपनी इन्वेस्टमेंट जर्नी की प्रोग्रेस ट्रैक करने में मदद मिलती है. हर व्यक्ति को अपने शॉर्ट, मिड और लॉन्ग टर्म फाइनेंशियल गोल्स तय करने चाहिए.
शॉर्ट टर्म फाइनेंशियल गोल में कार खरीदना या परिवार के साथ छुट्टियां मानना जबकि लॉन्ग टर्म फाइनेंशियल गोल्स में घर खरीदना, बच्चे की पढ़ाई और रिटायरमेंट प्लानिंग शामिल हो सकते हैं. ऐसे गोल को शॉर्ट टर्म गोल माना जाता है, जिनके लिए आमतौर पर आपको 3 साल के भीतर पैसों की जरूरत होती है जबकि लॉन्ग टर्म गोल के लिए 5-7 साल या उससे ऊपर के निवेश आते हैं. म्यूचुअल फंड में ज्यादा रिटर्न का फायदा तभी मिलेगा जब आप छोटी-छोटी जरूरत के लिए पैसा नहीं निकालें, धैर्य बनाए रखें और लंबे समय तक इन्वेस्ट करते रहें. निवेश शुरू करने से पहले आपको एक इमरजेंसी फंड बनाना चाहिए, जिसमें कम से कम 6 महीने की कमाई जितना पैसा होना चाहिए, ताकि जरूरत पड़ने पर आप इमरजेंसी फंड से पैसा निकाल सकें और आपका इन्वेस्टमेंट टूटने की नौबत न आए. इमरजेंसी फंड नहीं होने की सूरत में आप म्यूचुअल फंड पर लोन ले सकते हैं. इसके अलावा, समय-समय पर म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो का रिव्यू जरूरी करें ताकि फंड्स के परफॉर्मेंस पर नजर रख पाएं, जरूरत पड़ने पर फंड बदल सकें और फाइनेंशियल गोल्स के पूरा होने में किसी तरह का शॉर्टफॉल यानी कमी होने पर निवेश बढ़ाया जा सके.