प्राइमरी मार्केट (IPO मार्केट) में इतनी सरगर्मी पहले कभी नहीं देखी गई थी. 2021 की पहली छमाही में दो दर्जन कंपनियों ने IPO उतारे और इनके जरिए कुल मिलाकर 38,961 करोड़ रुपये की रकम जुटाई गई है. पिछले साल यानी कैलेंडर ईयर 2020 में कुल 16 कंपनियों ने अपने IPO उतारे थे और इस जरिए से 31,128 करोड़ रुपये की रकम जुटाई थी. बल्कि, 2021 की पहली छमाही में आए आधा दर्जन से ज्यादा IPO तो 100 गुने से ज्यादा सब्सक्राइब हुए हैं.
प्राइमरी मार्केट्स में बनी हुई जबरदस्त सरगर्मी के बावजूद रिटेल या इंडीविजुअल इनवेस्टर्स को अक्सर IPO में शेयरों का अलॉटमेंट नहीं हो पाता है. IPO में शेयर हासिल करने के लिए पूंजी से ज्यादा किस्मत की जरूरत होती है.
सेबी (SEBI) की गाइडलाइंस के मुताबिक, अगर कोई IPO रिटेल कैटेगरी में ओवरसब्सक्राइब होता है तो शेयर इस तरह से अलॉट होने चाहिए कि हर रिटेल बिडर को कम से कम एक लॉट मिल सके. बकाया शेयरों को प्रो-राटा बेसिस यानी आनुपातिक रूप से अलॉट किया जाना चाहिए.
हालांकि, एक हद तक किसी IPO के ओवरसब्सक्राइब होने पर जहां हर रिटेल बिडर (बोली लगाने वाले) के लिए न्यूनतम अलॉटमेंट मुमकिन नहीं होता है, वहां एप्लिकेशंस को लॉटरी के आधार पर चुना जाता है और शेयरों को उन्हें अलॉट किया जाता है.
ये रिटेल इनवेस्टर्स के लिए उचित नहीं है. ऐसा तब है जबकि मौजूदा वक्त में स्टॉक मार्केट्स के केंद्र में रिटेल इनवेस्टर्स ही हैं.
NSE के जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, स्टॉक एक्सचेंज पर 45 फीसदी टर्नओवर अब इंडीविजुअल इनवेस्टर्स कर रहे हैं.
इसे देखते हुए सेबी को एक बार फिर से IPO अलॉटमेंट की प्रक्रिया पर विचार करना चाहिए और एक ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जहां अधिकतम संख्या में इंडीविजुअल इनवेस्टर्स को IPO में कुछ शेयर मिल सकें.
सेबी को इंडियन रेलवे से सीखना चाहिए जिसने यात्रियों को कनफर्म्ड सीटें मुहैया कराने के लिए दिनरात मेहनत की है. इसे करने का एक तरीका ये है कि शेयर अलॉटमेंट में लॉट की जगह शेयरों की संख्या को रखा जाए और इन्हें रिटेल इनवेस्टर्स के लिए उपलब्ध शेयरों की संख्या के आधार पर बांटा जाए.
इससे हर रिटेल इनवेस्टर को कुछ शेयर मिलना मुमकिन हो सकता है. अगर रिटेल एप्लिकेशंस की संख्या बहुत ज्यादा है तो शेयरों के फ्रैक्शनल अलॉटमेंट पर भी विचार किया जा सकता है.
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