आप कितने फिट हैं उसका पता आपकी मेहनत करने की कैपेसिटी और अलग-अलग टेस्ट से चलता है. इसी तरह किसी कंपनी की फाइनेंशियल हेल्थ उसके प्रॉफिट से पता चलती है. स्टॉक मार्केट के इनवेस्टर्स कंपनी के नेट प्रॉफिट मार्जिन को जरूर देखते हैं.
इस तरह देखें प्रॉफिट मार्जिन
किसी भी कंपनी की प्रॉफिटेबिलिटी रेशियो जानने के लिए आपको उसका ग्रॉस प्रॉफिट, ऑपरेटिंग प्रॉफिट, बिफोर टैक्स मार्जिन और नेट प्रॉफिट मार्जिन देखना होगा. आइए इसको एक उदाहरण से समझते हैं.
मान लीजिए एक कंपनी कोल्ड ड्रिंक बनाती है. एक साल में उसकी टोटल सेल्स 2 करोड़ रुपये है. जबकि उसकी कॉस्ट यानी कोल्ड ड्रिंक बनाने में लेबर, मैटेरियल का खर्च 80 लाख रुपये है. इस तरह से कंपनी का ग्रॉस प्रॉफिट 1.20 करोड़ रुपये रहा.
अब मान लीजिए कि उसमें से आपको सेल्स-मार्केटिंग का खर्च 20 लाख और ऑफिस-एडमिनिस्ट्रेशन का खर्च 10 लाख रुपये देना पड़ रहा है. इसको ग्रॉस प्रॉफिट से माइनस करने पर आपको मिलता है 90 लाख रुपये का EBITDA यानी अर्निग बिफोर इंटरेस्ट, टैक्सेस, डेप्रीसिएशन एंड एमॉर्टाइजेशन.
अब इस प्रॉफिट में से मान लीजिए आपको डेप्रीसिएशन 10 लाख रुपये माइनस करने से आपको मिलेगा EBIT यानी ऑपरेटिंग प्रॉफिट. अब इसमें से आप लोन का इंटरेस्ट 20 लाख माइनस करते हैं तो हो जाता है 60 लाख रुपये.
ये पीबीटी यानी प्रॉफिट बिफोर टैक्स है. इसमें से मान लो 30 फीसदी टैक्स 18 लाख रुपये काट लेते हैं तो नेट प्रॉफिट 42 लाख रुपये आ जाता है.
अब इस हिसाब से इस कंपनी का ग्रॉस प्रॉफिट मार्जिन 60%, ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन 40%, प्रॉफिट मार्जिन 30% और नेट प्रॉफिट 20% है.
अब किसी कंपनी का ग्रॉस प्रॉफिट मार्जिन ज्यादा है तो इसका मतबल उसकी प्राइसिंग ज्यादा और कॉस्ट कम हो सकती है. प्राइसिंग हाई होने का कारण उसके प्रोडक्ट की गुणवत्ता, उच्च ब्रांडिग, एक्सक्लुसिव टेक्नोलॉजी हो सकती है. अगर ऑपरेटिंग कॉस्ट ज्यादा है तो कंपनी का ऑपरेटिंग प्रॉफिट कम हो जाएगा. अब बात करते हैं प्री-टैक्स मार्जिन की, तो अगर कंपनी ज्यादा इंटरेस्ट भर रही है तो उसका पीबीटी घट जाएगा. जबकि नेट प्रॉफिट में ऑपरेटिंग और नॉन-ऑपरेटिंग कॉस्ट माइसन हो जाती है.
आपको क्या देखना चाहिए
नेट प्रॉफिट कंपनी की ओवरऑल पिक्चर दिखा देता है. कोई भी एनालिस्ट या इनवेस्टर शेयर में इनवेस्ट करने से पहले नेट प्रॉफिट तो देखता ही है. लेकिन, सिर्फ नेट प्रॉफिट मार्जिन कंपनी की पूरी कहानी नहीं बताता है.
अगर आप उस कंपनी की किसी दूसरी कंपनी के साथ तुलना करते हैं तो इसके लिए आपको कंपनी का ग्रॉस प्रॉफिट, ऑपरेटिंग प्रॉफिट, प्री-टैक्स मार्जिन भी देखना चाहिए.
कंपनी की तुलना कैसे करनी चाहिए वो भी जान लेते हैं. अगर आप किसी दो कंपनी की तुलना उसके प्रॉफिट मार्जिन को ध्यान में रखकर करते हैं तो वो एक ही सेक्टर की होनी चाहिए. यानी इंफोसिस की तुलना टीसीएस से, मारुति की टाटा मोटर्स से कर सकते हैं.
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