किसी गंभीर बीमारी की स्थिति में ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते हैं. ऐसे में आपके पास एक हेल्थ इंश्योरेंस होना चाहिए. हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी किसी भी मेडिकल इमरजेंसी को कवर करती है और इलाज के भारी-भरकम खर्च से राहत दिलाने में मदद करती है.कई बीमा देने वाले नेटवर्क अस्पतालों में कैशलेस दावा सुविधा देते हैं. लेकिन कई बार बीमा कंपनी आपका क्लेम ख़ारिज कर देती हैं जानिए क्यों:
बीमा कंपनी हर क्लेम को दो तरीके से देखती हैं-कैशलेस या री इम्बर्स्मेंट. यह नेटवर्क या बिना नेटवर्क वाले हॉस्पिटल के हिसाब से होता है. कैशलेस क्लेम में ग्राहक को ईलाज के खर्च के लिए अस्पताल को कोई रकम चुकाने की जरूरत नहीं है. री इम्बर्स्मेंट में ग्राहक पहले ईलाज का खर्च चुकाता है और बाद में बीमा कंपनी उसे ग्राहक को चुकाती है.
अपने इंश्योरर को अपनी सेहत खराब होने के बारे में सूचित करें. उन्हें यह जानकारी दें कि आप किस हॉस्पिटल में भर्ती होने जा रहे हैं. चेक कीजिए कि आपकी पसंद का हॉस्पिटल उस लिस्ट में कवर हो जहां आपका इंश्योरर कैशलेस फैसिलिटी देता हो. अगर आपकी एडमिट होने की पहले से प्लानिंग है तो एडमिट होने या ट्रीटमेंट लेने के कम से कम 1 हफ्ते पहले अपने बीमा कंपनी को इस बारे में बताएं.
पॉलिसी लेते वक्त सभी टर्म्स और कंडीशन अच्छे से पढ़ें. एक्सक्लुशन सेक्शन में वो सभी बातें लिखी होती है जो पॉलिसी में कवर नहीं होती.
किसी भी पॉलिसी में एक वेटिंग पीरियड दिया होता है जिसके दौरान आप क्लेम नहीं कर सकते हैं. वेटिंग पीरियड की भी अलग-अलग कैटगरी होती हैं – इनिशियल वेटिंग पीरियड, प्री एक्सिस्टिंग डीसीज वेटिंग पीरियड और डीसीज स्पेसिफिक वेटिंग पीरियड.
कुछ पॉलिसी ऐसी भी होती हैं जहां आपको बिल की पेमेंट खुद से करनी होती है. आप तभी अपने खर्चों के लिए क्लेम कर सकते हैं जब पॉलिसी में तय की गई अमाउंट से ज्यादा खर्चा हो.
स्वास्थ्य बीमा का दावा खारिज होने का सबसे बड़ा कारण होता है बीमाधारक से गलत जानकारी देना. अगर आपको पहले से कोई बीमारी है या परिवार में कोई बीमारी पीढिय़ों से चली आ रही है तो स्वास्थ्य बीमा खरीदते वक्त उसकी जानकारी देना जरूरी है.
अगर डे-केयर प्रक्रिया नहीं है तो किसी भी अस्पताल में 24 घंटे से कम समय के लिए भर्ती होने पर किसी भी तरह का खर्चा हेल्थ इंश्योरेंस में कवर नहीं होता है. इसलिए आपको ऐसी किसी भी घटना के लिए क्लेम नहीं करना चाहिए.
विशेषज्ञों के मुताबिक किसी भी बीमा की रकम को 30 दिनों के अंदर मिल जाना चाहिए. अगर ऐसा नहीं होता है तो कई स्तर हैं, जहां इसकी शिकायत की जा सकती है.