जीवन बीमा पॉलिसी पर मिलने वाला रिटर्न लोगों को पहली बार पॉलिसी खरीदने के लिए एक सकारात्मक विचार देता है. लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि आपके द्वारा भुगतान किए गए प्रीमियम को बीमा कंपनियां कैसे और कहां निवेश करती है कि ग्राहकों को अच्छा रिटर्न दे सकें? जबकि यूनिट-लिंक्ड इन्वेस्टमेंट प्लान (यूलिप) अपने पोर्टफोलियो के बारे में जानकारी देते हैं, जबकि एंडोमेंट पॉलिसी इसके बारे में काफी हद तक गुप्त रहती हैं.
कोई भी इनके नेट एसेट वैल्यू और प्रीमियम से मिलने वाली राशि का कैसे इस्तेमाल होता है, ये भी नहीं मालूम. आपको जरूर जानना चाहिए कि इंश्योरेंस रेगुलेट्री और डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (Irdai) ने गाइडलाइन जारी की है कि इंश्योरेंस कंपनियां कैसे पॉलिसी होल्डर्स के पैसों को निवेश कर सकते हैं.
इंश्योरेंस रेगुलेटरी और डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ग्राहकों से मिलने वाले प्रीमियम की रकम का इंश्योरेंस कंपनियों को अलग अलग निवेश इंस्ट्रूमेंट्स में लगाने की आजादी देती है. यह इंश्योरेंस कंपनियों को पूंजी की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए पॉलिसी होल्डर को लाभ को अधिकतम करने के लिए जोखिम और इनाम को संतुलित करने में मदद करता है.
कोटक महिंद्रा लाइफ इंश्योरेंस सीआरओ और प्रेसिडेंट सुनील शर्मा ने कहा कि “इंश्योरेंस कंपनियों को आजादी है कि वो प्रीमियम की रकम को केंद्र सरकार की सिक्योरिटी, राज्य सरकार की सिक्योरिटी, सरकार गारंटीकृत कर्ज प्रतिभूतियों, बॉन्ड्स और सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा जारी डिबेंचर सहित प्राइवेट सेक्टर कंपनियों, सूचीबद्ध और गैर-सूचीबद्ध इक्विटी शेयर, प्रेफरेंस शेयर्स, अचल संपत्तियां, बैंकों द्वारा जारी अतिरिक्त टियर-1 बॉन्ड्स, रियल स्टेट ट्रस्ट की यूनिटों, इंफ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट ट्रस्ट और वैकल्पिक निवेश कोष, और फिक्स्ड इनकम डेरिवेटिव आदि में लगा सकती है.
जबकि बीमा कंपनियां सूचीबद्ध और गैर-सूचीबद्ध इक्विटी में निवेश तो कर सकती हैं, लेकिन भारत की प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों और देश के बाहर रजिस्टर्ड कंपनियों में प्रीमियम निवेश निवेश नहीं कर सकती हैं.
इंश्योरेंस रेगुलेटरी और डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया की गाइडलाइन है कि बीमा प्रीमियम के लिए इंस्ट्रूमेंट्स के प्रकार और पॉलिसीहोल्डर्स के द्वारा चुने गए इनवेस्टमेंट प्रोडक्स के आधार पर आवंटन ग्राहक के रिस्क लेने की क्षमता और जरूरत के हिसाब से होता है.
– कम से कम 50% सरकारी प्रतिभूतियों या सरकारी गारंटीकृत प्रतिभूतियों में होना चाहिए
– लोन और इक्विटी के जरिए किसी इकाई में कुल एक्सपोजर फंड के आकार के 10% से अधिक हिस्सेदारी नहीं होनी चाहिए
– AIF, REITS, InvITs की इकाइयों के लिए सीमित जोखिम होना चाहिए
– इंफ्रा डेट और इक्विटी सिक्योरिटीज में न्यूनतम 15% निवेश
पेंशन, वार्षिकी और समूह ग्रेच्युटी फंड उत्पाद
– कम से कम 50% सरकारी प्रतिभूतियों या सरकारी गारंटीकृत प्रतिभूतियों में होना चाहिए
– लोन और इक्विटी के जरिए किसी इकाई में कुल एक्सपोजर फंड के आकार के 10% से अधिक हिस्सेदारी नहीं होनी चाहिए
यूनिट लिंक्ड फंड्स
– यूनिट लिंक्ड फंड का एसेट आवंटन प्रोडक्ट्स के अप्रूवल और पॉलिसीहोल्डर्स द्वारा उनकी जोखिम क्षमता के आधार पर चुना जाता है
– पॉलिसीहोल्डर्स के जरिए चुने गए फंड एसेट आवंटन के अलावा सरकारी सिक्योरिटीज और इंफ्रा एसेट्स में कोई अनिवार्य निवेश नहीं है.
– लोन और इक्विटी के जरिए किसी इकाई में कुल एक्सपोजर फंड के आकार का 10% से अधिक हिस्सा नहीं होना चाहिए
अगर इंश्योरेंस कंपनियों को हमारे प्रीमियम को निवेश करने की आजादी है. उनमें से प्रत्येक पर कई रेगुलरेलिटी कैप लगाने की क्या आवश्यकता है? दरअसल ये ग्राहकों के हितों की रक्षा करने के लिए है. इंश्योरेंस रेगुलेटरी और डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया का लक्ष्य कभी पॉलिसीहोल्डर्स की रकम को गलत निवेश के फैसले से डुबोना नहीं है. इंश्योरेंस रेगुलेटरी कई तरीकों से खतरों को भांपते हुए ग्राहकों के हित की रक्षा के लिए कदम उठाती है.
शर्मा ने बताया कि इंश्योरेंस रेगुलेटरी और डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया गैर-लिंक्ड फंड्स से सरकारी और सरकारी गारंटीशुदा प्रतिभूतियों में न्यूनतम निवेश तय करके ग्राहकों के हितों की रक्षा करना सुनिश्चित करता है. यह आगे के खतरे को रोकने के लिए निजी लिमिटेड कंपनियों में निवेश करने की अनुमति नहीं देता है. इसने लोन और इक्विटी सहित सभी निवेशों के माध्यम से सिंगल कंपनी के जोखिम को सीमित कर दिया है. इसी के साथ-साथ, उन कंपनियों तक लिमिटेड लोन जोखिम है जिन्हें AA से नीचे की रेटिंग दी गई हैं और इक्विटी प्रतिभूतियां जिनके पास पर्याप्त लाभांश-भुगतान का ट्रैक रिकॉर्ड नहीं है.