एक्सीडेंट में घायल विनोद राघव आठ दिन से अस्पताल में भर्ती थे. डॉक्टरों की तमाम कोशिशों के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका. इलाज का 6 लाख रुपए बिल आया है. विनोद ने 10 लाख रुपए का हेल्थ बीमा कवर ले रखा था. विनोद की मौत के बाद अब उनकी बीमा पॉलिसी का क्या होगा? उनके इलाज का क्लेम कैसे मिलेगा, इस बारे में परिजन समझ नहीं पा रहे हैं. दरअसल, हेल्थ बीमा पॉलिसी मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती हैं. इंडिविजुअल, फैमिली फ्लोटर और ग्रुप इंश्योरेंस. इनमें बीमा कंपनियों के नियम अलग-अलग होते हैं. आइए समझते हैं कब क्या नियम लागू होते हैं.
इंडिवजुअल हेल्थ पॉलिसी
बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस के हेड, हेल्थ एडमिनिस्ट्रेशन टीम भास्कर नेरुरकर कहते हैं कि इंडिविजुअल हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी में सम इंश्योर्ड की राशि और बेनेफिट्स बीमाधारक के लिए फिक्स रहते हैं. इंडिविजुअल पॉलिसी में बीमाधारक की मौत के बाद पॉलिसी बंद हो जाएगी. अगर पॉलिसी ईयर में कोई क्लेम नहीं लिया है तो नियमों के मुताबिक कंपनी प्रीमियम रिफंड करेगी.
नेरुरकर कहते हैं कि विनोद के मामले में उनके परिजन इलाज के पैसे के लिए क्लेम कर सकते हैं. बीमा कंपनी क्लेम की राशि सीधे अस्पताल को ट्रांसफर कर देगी. अगर अस्पताल बीमा कंपनी के नेटवर्क में शामिल नहीं है तो पॉलिसी में दर्ज नॉमिनी को इस राशि के लिए क्लेम करना होगा. बीमा कंपनी क्लेम का भुगतान कर देगी. अगर पॉलिसी में कोई नॉमिनी नहीं है तो परिवार के सदस्य को कोर्ट से सक्सेशन लैटर बनवा कर क्लेम करना होगा. इस स्थिति में बीमा कंपनी विनोद के उत्तराधिकारी को क्लेम का भुगतान करेगी.
फ्लोटर हेल्थ पॉलिसी
हेल्थ बीमा की फैमिली फ्लोटर पॉलिसी में पूरे परिवार को एक ही समइंश्योर्ड मिलता है. उदाहरण के लिए परिवार में चार सदस्य हैं. अगर आप 10 लाख रुपए का समइंश्योर्ड लेते हैं. ऐसे में परिवार का कोई भी सदस्य 10 लाख रुपए तक का इलाज करा सकता है. पॉलिसी ईयर में सभी सदस्य मिलकर 10 लाख रुपए तक का ही क्लेम कर सकते हैं. अगर विनोद की फ्लोटर पॉलिसी है और उसमें पर्याप्त कवर बकाया है तो उनके परिजनों इलाज के पैसे के लिए क्लेम कर सकते हैं. नियमों के तहत बीमा कंपनी क्लेम का भुगतान कर देगी. रिन्यू होने तक यह पॉलिसी एक्टिव रहेगी और परिवार के सदस्यों को कवर मिलता रहेगा.
हालांकि पॉलिसी के प्रपोजर यानी प्रस्तावक की मौत के बाद परिवार की जिम्मेदारी है कि इस बारे में बीमा कंपनी को जानकारी दें. नियमों के तहत बीमाधारक की मौत के बाद बीमा पॉलिसी में प्रपोजर का नाम बदलना जरूरी है. इस स्थिति में नए प्रपोजर के नाम से एक फॉर्म भरकर बीमा कंपनी में जमा करना होगा. इस आधार पर बीमा कंपनी प्रपोजर का नाम बदल कर नई पॉलिसी जारी कर देगी. पॉलिसी में एक सदस्य कम होने से बीमा का रिन्युअल प्रीमियम कम हो जाएगा. आगे से नए प्रपोजर को ही बीमा प्रीमियम का भुगतान करना होगा.
ग्रुप हेल्थ बीमा
ज्यादातर बीमा कंपनियां अपने कर्मचारियों को ग्रुप हेल्थ बीमा की सुविधा देती हैं. यह ग्रुप इंश्योरेंस फैमिली फ्लोटर पॉलिसी के रूप में काम करता है. कर्मचारी की मौत होने पर कंपनी इसकी सूचना बीमा कंपनी को देती है. अगर कर्मचारी ने पॉलिसी ईयर में कोई क्लेम नहीं लिया है तो कंपनी प्रीमियम रिफंड ले सकती है. अगर कंपनी ने रिफंड नहीं लिया है तो मृतक कर्मचारी के परिवार को रिन्यूअल की तारीख तक कवर मिलता रहेगा. इसके बाद पॉलिसी बंद हो जाएगी.
मनी9 की सलाह
मौत कभी बताकर नहीं आती है. इस बात का किसी को कुछ नहीं पता होता कि आगे उसके साथ क्या होने वाला है. यही जीवन की सचाई है. आपके इस दुनिया में न रहने के बाद परिजनों को परेशानी न हो इसलिए हेल्थ बीमा पॉलिसी लेने से पहले उसके नियम और शर्तों को तसल्ली से पढ़ें. इस बारे में परिवार के सदस्यों को बताएं. पॉलिसी में नॉमिनी जरूर दर्ज करें ताकि आपके बाद परिवार के सदस्यों को क्लेम के लिए कोर्ट कचहरी के चक्कर न लगाने पड़ें.