नौकरी से रिटायर होने के बाद अमन के पिताजी के पास कोई हेल्थ इंश्योरेंस कवर नहीं है. माता-पिता के लिए हेल्थ पॉलिसी की बात की तो उन्हें ऐसी कई बातें बताईं जिनसे वह उलझन में फंस गए. बीमा कंपनी की बातों से अमन को एक बात अच्छी तरह से समझ आई कि कम उम्र में हेल्थ कवर आसानी से मिल जाता है. उम्र बढ़ने पर तमाम तरह की अड़चनें शुरू हो जाती हैं. और 60 साल की आयु के बाद यह बीमा मिलना मुश्किल हो जाता है.
देश में इलाज की महंगाई सामान्य की तुलना में दोगुनी महंगाई से बढ़ रही है. छोटी मोटी बीमारी के इलाज का खर्च लाख रुपए तक में पहुंच जाता है. अगर आपके माता-पिता बजुर्ग हैं और उनके लिए कोई हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी ली है तो जल्द करें. बुजुर्गों के लिए हेल्थ इंश्योरेंस खरीदने से पहले ऐसी कौन सी पांच बातें हैं जिन पर ध्यान देना चाहिए
पुरानी बीमारी का कवर
उम्र बढ़ने के साथ लोगों में ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, जैसी बीमारियां होना आम बात है. बीमा कंपनियां पहले से मौजूद बीमारियों यानी pre existing disease को कवर नहीं करतीं. इस तरह की बीमारियों को कवर करने के लिए वेटिंग पीरियड होता है. यह पीरियड एक महीने से लेकर दो से तीन साल तक का भी हो सकता है. इसके बाद ही ये बीमारियां कवर होती हैं. पहले से मौजूद कुछ गंभीर बीमारियों को कंपनियां कवर भी नहीं करतीं. ऐसे में जब आप बुजुर्गों के लिए हेल्थ कवर खरीद रहे हैं तो इस बात को अच्छी तरह समझ लें कि पुरानी कवर हो रही हैं या नहीं.
कैशलेस अस्पतालों का नेटवर्क
अगर कोई व्यक्ति गंभीर बीमारी से पीड़ित है तो उसे कभी भी हॉस्पिटल में भर्ती करने की जरूरत पड़ सकती है. इसलिए हेल्थ पॉलिसी खरीदते समय कैशलेस हॉस्पिटल के नेटवर्क की सूची देखें. आपके घर के करीब जो अच्छे हॉस्पिटल वह नेटवर्क में शामिल हों ताकि अपनी पसंद के हॉस्पिटल में इलाज कराया जा सके. पॉलिसी में कैशलेस हॉस्पिटल का नेटवर्क जितना ज्यादा बड़ा होगा, आपके लिए उतना ही अच्छा रहेगा.
जीरो को-पेमेंट को चुने
कई पॉलिसियों में को-पेमेंट का क्लॉज होता है. इसके तहत आपको क्लेम राशि के पहले कुछ रकम का भुगतान अपनी जेब से करना होता है. बीमा पॉलिसी में यह राशि पहले से तय होती है. उदाहरण के लिए आपकी पॉलिसी में 20 फीसद का को-पेमेंट का क्लॉज है. हॉस्पिटल के इलाज का बिल एक लाख रुपए आया है तो 20 हजार रुपए आपको अपनी जेब से भरने होंगे. इसलिए आपको ऐसा प्लान चुनना चाहिए जिसमें को-पेमेंट का क्लॉज न हो.
डिडक्टिबल का विकल्प
क्लेम ज्यादा आने की वजह से बीमा कंपनियां बुजुर्गों को हेल्थ कवर देने से बचती हैं. कंपनियां जो कवर दे रही हैं उसमें कई तरह की शर्तें जोड़ देती हैं. डिडक्टिबल ऐसा ही एक क्लॉज है. एक सीमा तक इलाज का खर्च अपनी जेब से देना होगा. उस सीमा से ऊपर के खर्च को बीमा कंपनी कवर करेगी. उदाहरण के लिए आपकी पॉलिसी में डिडक्टिबल राशि 10,000 रुपए है. हॉस्पिटल में इलाज का खर्च 50,000 रुपए आया है. बीमा कंपनी 40,000 रुपए का ही क्लेम देगी. ध्यान रखें, कंपनी डिडक्टिबल राशि तक का कवर क्लेम नहीं करेगी.
सब लिमिट
सब लिमिट के बारे में बीमा कंपनियां आपको खुलकर नहीं बताएंगी. इस शर्त के तहत बीमा कंपनी हॉस्पिटल में इलाज के खर्च की एक लिमिट तय कर देती है. इसमें रूम रेंट, डॉक्टर की कल्सटेशन फीस और पहले से प्लान किए गए ऑपरेशन शामिल होते हैं. उदाहरण के मोतियाबिंद के ऑपरेशन के लिए 30 हजार रुपए तय हैं.. और हॉस्पिटल का बिल 50 हजार रुपए है तो 20 हजार रुपए से ऊपर की रकम आपको खुद चुकानी होगी.
टैक्स एंड इंवेस्टमेंट एक्सपर्ट बलवंत जैन कहते हैं कि बुढ़ापे में बीमारियां ज्यादा असर करती हैं. इसलिए अस्पताल में भर्ती होने की ज्यादा जरूरत होती है. कम से कम क्लेम देना पड़े, इसलिए बीमा कंपनियां अपनी पॉलिसियों में तमाम तरह की शर्तें लगाती हैं. लेकिन आपको ऐसी पॉलिसी लेनी चाहिए जिसमें को-पेमेंट, डिडक्टिबल, सबलिमिट जैसी कम से कम शर्तें जुड़ी हों.
अगर आपके माता पिता बुजुर्ग हैं तो उनके लिए पर्याप्त राशि का हेल्थ इंश्योरेंस कवर खरीदें. पॉलिसी से जुड़ी शर्तें को बारीकी से पढ़ें. एक से ज्यादा कंपनियों की प्लान की तुलना करें. इसके बाद ही अंतिम फैसला लें.