वित्तीय समावेशन के शौर के बावजूद भारत में बीमा की पहुंच बहुत खराब है. एक वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद और कुल प्रीमियम के अनुपात की गणना करें, तो यह मार्च 2020 तक 4.2% है. महामारी के चलते इसमें तेजी आई और बाजार का आकार बढ़ा. इसके बावजूद यह अनुपात 2020-21 में 5.2 फीसदी से अधिक नहीं होगा. वित्त वर्ष 2009-10 में दर 5.2-5.1% थी, लेकिन फिर गिर गई.
इसकी तुलना में ताइवान, दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका में यह अनुपात क्रमशः 17.5%, 13.7% और 12% है. अन्य कारकों के अलावा बीमा की इस कमजोर पहुंच के कारणों में से एक उत्पादों की सीमित श्रृंखला है. टर्म इंश्योरेंस जैसे बुनियादी उत्पाद को भी देश में 2009 के अंत में पेश किया गया था.
सौभाग्य से इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक सर्जन्स द्वारा बहुत सारी बातचीत और विश्वास के बाद केवल एक बीमा कंपनी स्टार हेल्थ एंड एलाइड इंश्योरेंस जन्मजात बीमारियों के खिलाफ अजन्मे बच्चों के बीमा के लिए आगे आई है. भावी माता-पिता के लिए यह एक बड़ी राहत होगी. इस देश में लगभग 17 लाख बच्चे जन्म दोष के साथ पैदा होते हैं और यह बीमा कई लोगों के लिए वरदान हो सकता है. अगर ज्यादा से ज्यादा कंपनियां इस सेवा की पेशकश शुरू करें, तो इससे कई लोगों को राहत मिलेगी.
युवा माता-पिता बढ़ते परिवार की लागतों के बोझ तले दबे होते हैं. जन्मजात परेशानी वाला बच्चा उन्हें अंतहीन चिंताएं देता है. यदि इस तरह की चुनौतियों के अलावा वे इलाज की गंभीर लागतों के बोझ तले दब जाते हैं, तो यह उनके दुख को असीम बना देगा. ऐसी किसी भी घटना से बचाव के लिए इस तरह के बीमा उत्पाद को बहुत सारे खरीदार मिल सकते हैं.
अब भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण को इस उत्पाद को मंजूरी देनी होगी. रिपोर्ट्स के अनुसार, सरकार ऐसे उत्पाद की आवश्यकता के बारे में नियामक को समझाने की प्रक्रिया में मदद करेगी. यह एक महत्वपूर्ण आवश्यकता को पूरा करता है और अधिक से अधिक बीमा कंपनियों को इसे नागरिकों को प्रदान करने के लिए आगे आना चाहिए. परिष्कृत उत्पाद एक परिपक्व अर्थव्यवस्था में बाजार को बढ़ने में मदद करते हैं.