हम सभी कार इंश्योरेंस (car insurance) के महत्व को समझते हैं. यह हमें किसी अनिश्चित स्थिति में अनावश्यक खर्च से बचाता है. यदि आपके पास कार है तो आपके थर्ड-पार्टी वाहन बीमा जरूर होना चाहिए. कार इंश्योरेंस (car insurance) में कुछ तकनीकी शब्द ऐसे होते हैं जिन्हें हम पूरी तरह से नहीं पाते. ब्रेक-इन पीरियड में ऐसा ही एक शब्द है. क्या आपको इसका मतलब पता है?
यह आपके मौजूदा इंश्योरेंस के रिन्यूअल की अंतिम तारीख और रिन्यू होने की वास्तविक तारीख के बीच की अवधि होती है. इस अवधि में मोटर इंश्योरेंस निष्क्रिय होता है. यानि, इस दौरान आपकी कार को कोई नुकसान होता है तो बीमा उसकी भरपाई नहीं करेगी.
ज्यादातर बीमा कंपनियां 90 दिन का ग्रेड पीरियड देती हैं, जिसके भीतर आप अपनी कार की बीमा को रिन्यू कर सकते हैं. इस अवधि में आपको नो-क्लेम बोनस (NCB) की सुविधा मिलती रहती है. इस समय के बाद आपकी जमा सुविधाएं खत्म हो जाती है. यहां तक कि पॉलिसी भी समाप्त हो जाती है.
ब्रेक-इन पीरियड आपकी कानूनी और वित्तीय सुरक्षा को प्रभावित कर सकती है.
मोटर व्हीकल एक्ट के मुताबिक भारत में सभी कार मालिकों के पास थर्ड-पार्टी लायबिलिटी इंश्योरेंस अनिवार्य है. इसकी वजह से ब्रेक-इन पीरियड में कार चलाना गैर-कानूनी होता है. इस दौरान आपको मौद्रिक दंड का भुगतान करना पड़ सकता है.
बीमा का मुख्य उद्देश्य अप्रिय स्थिति में वित्तीय नुकसान से सुरक्षा प्रदान प्रदान करना होता है. जानकारों के अनुसार, ब्रेक-इन पीरियड, कार बीमा न होने के बराबर ही है. इस दौरान कोई भी नुकसान होने पर कवर प्रदान नहीं किया जाता.