Insurance Policy: कई बार तूफान या प्राकृतिक आपदाओं की वजह से लोग गायब हो जाते है. कई बार लोग बिना बताए भी घर छोड़कर चले भी जाते हैं. सालों तक उनका पता नहीं चल पाता है.
उस व्यक्ति ने यदि बीमा (Insurance Policy) लिया होगा, तो आप उसे लैप्स होने से बचा सकते है और बीमा की रकम क्लेम भी कर सकते हैं.
आम तौर पर देखें तो, परिवार के सदस्य की मृत्यु होने पर हम डेथ सर्टिफिकेट जमा करवाने के बाद इंश्योरेंस क्लेम करते हैं, लेकिन, परिवार का सदस्य लापता हो तो डेथ सर्टिफिकेट नहीं मिलता है.
ऐसी स्थिति में कानून का सहारा लेकर आप लापता/गायब हुए व्यक्ति को मृत घोषित करवा सकते हैं.
अगर व्यक्ति गायब होता है, तो उसकी जीवन बीमा पॉलिसी को बरकरार रखने के लिए परिवार के सदस्य प्रीमियम चुका सकते हैं. नहीं तो पॉलिसी लैप्स हो जाएगी. खासकर टर्म प्लान के मामले में ऐसा होता है.
सबसे पहले लोकल पुलिस थाना में एफआईआर दर्ज करवाएं. गायब हुए पॉलिसीधारक के परिवार का कोई भी सदस्य या कानूनी वारिस या अन्य कोई व्यक्ति भी मिसिंग रिपोर्ट दर्ज करवा सकता है. एफआईआर की कॉपी संभाल कर रखें.
यदि सात साल तक व्यक्ति का पता नहीं चलता, तो पुलिस नॉन-ट्रेसेबल रिपोर्ट तैयार करती है. आपको ये रिपोर्ट लेनी होगी और कोर्ट में दर्ज करवानी होगी.
इसके आधार पर ही कोर्ट लापता बीमाधारक व्यक्ति को मृत मानने का ऑर्डर पास करेगा. आपको ये ऑर्डर लेना होगा.
मिसिंग व्यक्ति को मृत घोषित करने का कोर्ट ऑर्डर हासिल करने के बाद इसे बीमा कंपनी में जमा करवाएं. इसके साथ डेथ सर्टिफिकेट जैसे जरूरी दस्तावेज भी जमा करवाएं.
कोर्ट ही बीमा कंपनी को बीमा जारी करने का आदेश देता है, जिसके आधार पर बीमा कंपनी बेनिफिशियरी को अश्योर्ड डेथ बेनिफिट फंड चुकाती है.
इंडियन एविडेंट एक्ट के सेक्शन 108 के अनुसार, किसी व्यक्ति के गायब होने के बारे में दर्ज एफआईआर के सात साल बाद उसे मृत मान लिया जाता है.
इस तरह किसी गायब व्यक्ति के बीमा की रकम हासिल करने के लिए परिजनों को कम से कम सात साल तक इंतजार करना होगा. कई बार गायब व्यक्ति के बीमा के मामले में 7 साल की शर्त का पालन नहीं किया जा सकता.
अगर तमाम साक्ष्यों से यह बात साफ प्रमाणित हो रही है कि व्यक्ति की मौत हो चुकी है, तो बीमा कंपनी सात साल की शर्त में राहत दे सकती है, जैसे सरकार ने लिस्ट जारी कर मौत की आशंका जाहिर की हो.