कुछ समय पहले तक प्री-एग्जिस्टिंग डिजीज कस्टमर और इंश्योरेंस कंपनियों दोनों के लिए चिंता का कारण थीं, क्योंकि प्रत्येक कंपनी की डेफिनेशन उनके अंडरराइटिंग प्रिंसिपल पर आधारित थी. अब पहले से मौजूद बीमारियों के लिए मैक्सिमम 48 महीनों के वेटिंग पीरियड को डिफाइन कर दिया गया है, जिससे क्लेम सेटलमेंट प्रॉसेस के दौरान कम मुश्किलें आती हैं.
भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) के अनुसार, पहले से मौजूद बीमारियों को किसी भी स्थिति, बीमारी, चोट या संबंधित स्थिति के रूप में डिफाइन किया गया है.
उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति को पहले हार्ट की प्रॉब्लम थी, लेकिन बाद में वो ठीक हो गया और पॉलिसी लेने के चार साल पहले उसने कोई मेडिकल हेल्प नहीं ली. क्या ऐसे में इसे पहले से मौजूद बीमारी माना जाता है? इस केस में, हार्ट की कंडीशन को पहले से मौजूद बीमारी नहीं माना जाएगा, क्योंकि पॉलिसी खरीदने से पहले चार साल बीत चुके हैं. लेकिन कस्टमर से ये उम्मीद की जाती है कि वो प्रपोजल फॉर्म भरते समय इस कंडीशन को डिक्लेयर करे. इसके अलावा, पॉलिसी जारी करना बीमाकर्ता की जोखिम लेने की क्षमता पर निर्भर करता है.
आसान क्लेम सेटलमेंट के लिए इन बातों का रखें ख्याल
हेल्थ डिक्लरेशन: किसी को कोई जानकारी छिपानी नहीं चाहिए या प्रपोजल फॉर्म पर ओवरराइट नहीं करना चाहिए. सही और प्रामाणिक जानकारी बीमाकर्ता के साथ साझा की जानी चाहिए, ताकि बाद में कोई परेशानी न हो. फैक्ट को गलत तरीके से प्रेजेंट करना या मेडिकल कंडीशन छुपाने से बाद में क्लेम रिजेक्ट हो सकता है. इसलिए, हमेशा प्रपोजल फॉर्म को सही तरीके से भरें.
डॉक्यूमेंट: अक्सर देखा जाता है कि लोग अस्पताल से छुट्टी मिलने के तुरंत बाद डॉक्यूमेंट जमा नहीं करते हैं. यह गलती महंगी पड़ सकती है, क्योंकि बीमा कंपनियों के पास डॉक्युमेंट सबमिट करने के लिए 7-15 दिनों की टाइम लिमिट होती है. जल्दी क्लेम का सेटलमेंट सुनिश्चित करने के लिए पॉलिसी होल्डर को इंश्योरर को सभी जरूरी डॉक्यूमेंट जल्दी प्रोवाइड कराने चाहिए.
फाइन प्रिंट्स: पॉलिसी खरीदने से पहले पॉलिसी के बारे में सभी बातें जाननी जरूरी हैं. बेनिफिट, एक्सक्लूजन और वेटिंग पीरियड के बारे में पहले से पता होने से क्लेम प्रॉसेस पॉलिसी होल्डर के लिए आसान हो जाता है.