नॉन-नेटवर्क हॉस्पिटल में इलाज का खर्च कैसे करें क्लेम?

इंश्योरेंस कंपनियां नॉन-नेटवर्क हॉस्पिटल में भर्ती होने की कॉस्ट रिम्बर्स करती हैं, बशर्ते कि आपके पास सभी डॉक्युमेंट हों और केवल पूरी कॉस्ट का 70% तक

  • Team Money9
  • Updated Date - October 8, 2021, 09:05 IST
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मेडिकल रिकॉर्ड, रेलिवेंट बिल और KYC डॉक्यूमेंट के साथ अपना क्लेम फॉर्म जमा करना होगा. सभी ओरिजनल और सपोर्टिंग डॉक्यूमेंट जमा करना जरूरी हैं

मेडिकल रिकॉर्ड, रेलिवेंट बिल और KYC डॉक्यूमेंट के साथ अपना क्लेम फॉर्म जमा करना होगा. सभी ओरिजनल और सपोर्टिंग डॉक्यूमेंट जमा करना जरूरी हैं

महामारी ने सभी को हेल्थ इंश्योरेंस (Health Insurance) के महत्व को समझाया है. आम तौर पर, हम कैशलेस फैसिलिटी पसंद करते हैं क्योंकि हॉस्पिटल में कैश डिपॉजिट करने की जरूरत नहीं होती है. इंश्योरर आमतौर पर हॉस्पिटल को TPA के जरिए भुगतान करते हैं. लेकिन क्या होता है अगर किसी व्यक्ति को नॉन-नेटवर्क हॉस्पिटल में इलाज कराना  पड़ता है? क्या ऐसी स्थिति में हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी मदद करती है और यदि हां, तो कैसे मदद करती हैं?

हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी एक नॉन-नेटवर्क हॉस्पिटल में भी काम करती है लेकिन जितनी आसानी किसी नेटवर्क हॉस्पिटल में भर्ती होने के दौरान अनुभव की जा सकती है उतनी नॉन-नेटवर्क हॉस्पिटल में नहीं.

नेटवर्क हॉस्पिटल्स

हर इंश्योरेंस कंपनी के पास कई हॉस्पिटल, क्लीनिक आदि की एक लिस्ट होती है. जो आम तौर पर अपने पॉलिसी होल्डर के लिए दूसरों की तुलना में कम चार्ज करते हैं. और, बदले में, हॉस्पिटल्स को ज्यादा पेशेंट मिलते हैं जो इंश्योरेंस कंपनी के नेटवर्क के जरिए से उनके पास जाते हैं. हर इंश्योरेंस कंपनी के पास नेटवर्क हॉस्पिटल्स की एक लिस्ट होती है जो कैशलेस फैसिलिटी ऑफर करते हैं. इन हॉस्पिटल्स में इलाज के लिए किसी कैश पेमेंट की जरूरत नहीं है क्योंकि हॉस्पिटलाइजेशन का खर्च इंश्योरेंस कंपनी द्वारा ही अस्पताल को दिया जाता है.

नॉन-नेटवर्क हॉस्पिटल्स

यदि कोई मरीज ऐसे हॉस्पिटल में भर्ती है जो इंश्योरेंस कंपनी की लिस्ट में नहीं है, तो उसे नॉन-नेटवर्क हॉस्पिटल कहा जाता है. नॉन-नेटवर्क हॉस्पिटल्स में कोई कैशलेस सुविधा उपलब्ध नहीं है और पेशेंट को सारा खर्च खुद उठाना पड़ता है.
उसके बाद वो एक क्लेम फाइल कर सकता है और यदि सब कुछ ठीक है, तो इंश्योरेंस कंपनी टोटल बिल अमाउंट का 60-70% के बीच रिम्बर्स कर सकती है. यह ज्यादा भी हो सकता है अगर इंश्योरेंस कंपनी को सभी आवश्यक डॉक्यूमेंट प्रोवाइड किए जाते हैं और इंश्योरर उन्हें एक्सेप्ट कर लेता है.

यह काम किस तरह करता है

इमरजेंसी में हम अक्सर यह चेक करने की स्थिति में नहीं होते हैं कि कौन से हॉस्पिटल TPA लिस्ट में हैं.
जब कोई व्यक्ति नॉन-नेटवर्क हॉस्पिटल में भर्ती होता है, तो उसे पहले इलाज का पूरा खर्चा खुद देना पड़ता है. फिर वो रिम्बर्समेंट क्लेम करने के लिए इंश्योरेंस प्रोवाइडर को ट्रीटमेंट से संबंधित सभी डॉक्यूमेंट जमा कर सकता है.

सभी डॉक्यूमेंट चेक करने के बाद इंश्योरेंस कंपनी 10-12 दिनों में पॉलिसी होल्डर को अमाउंट रिफंड कर देती है.
लेकिन उसके लिए इंश्योरर से करीब 90% खर्च निकालना मुश्किल है. लेकिन अगर व्यक्ति का इलाज नॉन-नेटवर्क हॉस्पिटल में होता है तो उसे इंश्योरेंस कंपनी से 60%-70% मिल सकता है.

प्रोसेस

यदि कोई नॉन-नेटवर्क हॉस्पिटल में ट्रीटमेंट कराता है तो रिम्बर्समेंट पाने का प्रोसेस थोड़ा जटिल है. पूरा मेडिकल ट्रीटमेंट होने के बाद पॉलिसी होल्डर पहले रिम्बर्समेंट के लिए क्लेम फाइल करता है. यह एक प्रिसक्राइब्ड फॉर्म में किया जाता है जो इंश्योरेंस कंपनी प्रोवाइड करती है. लेकिन व्यक्ति को पहले पूरा बिल अपनी जेब से भरना होगा. बाद में पॉलिसी होल्डर को सभी मेडिकल रिकॉर्ड, रेलिवेंट बिल और KYC डॉक्यूमेंट के साथ अपना क्लेम फॉर्म जमा करना होगा. सभी ओरिजनल और सपोर्टिंग डॉक्यूमेंट जमा करना जरूरी हैं.

सभी डॉक्यूमेंट चेक करने के बाद और मौजूदा पॉलिसी के रूल्स और रेगुलेशन के अनुसार, क्लेम सेटलमेंट रूल्स के हिसाब से पॉलिसी होल्डर को अमाउंट रिफंड किया जाता है. एक्सपर्ट का कहना है कि यह अमाउंट शायद ही कभी टोटल बिल अमाउंट के 70% से ज्यादा होता है. लेकिन नॉन-नेटवर्क हॉस्पिटल में कैशलेस सुविधा उपलब्ध नहीं होती है.

Published - October 8, 2021, 09:05 IST