इंश्योरेंस इंडस्ट्री सबसे ज्यादा कंज्यूमर कंप्लेंट फेस करने वाले सेक्टर में से एक है. क्लेम का भुगतान न करने से लेकर आंशिक भुगतान तक ग्राहक कंज्यूमर इंश्योरेंस कंपनी के साथ अपने क्लेम एक्सपीरिएंस को शेयर करने के लिए तैयार हैं, खासतौर से कोविड -19 क्राइसिस के दौरान, जिसने इंश्योरेंस क्लेम की संख्या को काफी बढ़ा दिया. आंकड़ों के मुताबिक, कोविड -19 के इलाज की लागत का लगभग 40% पॉलिसीहोल्डर्स ने अपनी जेब से खर्च किया. ऐसे मामले में यदि आप इंश्योरेंस कंपनी के साथ अपनी शिकायत को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो यहां जानें कैसे:
शिकायत निवारण सेल (Grievance redressal cell)
पॉलिसीहोल्डर जिनके पास बीमाकर्ताओं के खिलाफ शिकायत है, उन्हें पहले संबंधित बीमाकर्ता के शिकायत निवारण सेल से संपर्क करना होगा. यदि उन्हें रीजनेबिल टाइम पीरियड तक बीमाकर्ता से कोई रिस्पॉन्स नहीं मिलता है या वो कंपनी के रिस्पॉन्स से संतुष्ट नहीं होते हैं, तो वो IRDAI से संपर्क कर सकते हैं.
इंटीग्रेटेड ग्रीवेंस मैनेजमेंट सिस्टम (IGMS)
कोई भी इंटीग्रेटेड ग्रीवेंस मैनजमेंट सिस्टम (IGMS) पर IRDAI के साथ शिकायत दर्ज कर सकता है, जो इंश्योरेंस ग्रीवेंस डेटा के सेंट्रल रिपॉजिटरी के रूप में काम करता है. ये IRDAI की एक पहल है जहां आप अपनी पॉलिसी डिटेल्स के साथ सिस्टम पर अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं. यहां से शिकायतें संबंधित इंश्योरेंस कंपनियों को भेजी जाती हैं. इस बीच, IGMS शिकायतों और उनके निवारण के लिए लगने वाले समय को ट्रैक करता है.
बीमा लोकपाल
कोई भी बीमा लोकपाल से संपर्क कर सकता है, जिसे नवंबर 1998 में भारत सरकार द्वारा स्थापित किया गया था. इसका खास उद्देश्य है क्लेम के सेटलमेंट में आने वाली सभी समस्याओं को दूर करना.
कंज्यूमर डिस्प्यूट रिड्रेसल एजेंसी
आप कंज्यूमर कोर्ट में जाकर या ऑनलाइन कंज्यूमर कंप्लेंट दर्ज कर सकते हैं. रिड्रेसल एजेंसियों की स्थापना हर जिले और राज्य में और राष्ट्रीय स्तर पर की जाती है.
डिस्ट्रिक्ट फोरम
फोरम के पास उन शिकायतों पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र है, जहां गुड्स या सर्विस वैल्यू और क्लेम किया गया मुआवजा 20 लाख रुपये तक है. कोर्ट फीस 100 से 500 रुपये के बीच होती है.
स्टेट कमीशन
वो मामले जिनमें गुड्स या सर्विस वैल्यू 20 लाख रुपये से ज्यादा है लेकिन 1 करोड़ रुपये से कम दर्ज किए जा सकते है. डिस्ट्रिक्ट फोरम के आदेशों को आदेश पारित होने के 30 दिनों के भीतर यहां चुनौती दी जा सकती है. 20 लाख रुपये से ज्यादा और 50 लाख रुपये तक के मामलों के लिए कोर्ट फीस 2,000 रुपये है, जबकि 1 करोड़ रुपये तक के मामलों के लिए कोर्ट फीस 4,000 रुपये है.
नेशनल कमीशन
असंतुष्ट उपभोक्ता आदेश की तिथि से एक माह के भीतर स्टेट कमीशन (राज्य आयोग) के फैसले के खिलाफ अपील कर सकता है. यह उन विवाद पर विचार करेगा, जहां गुड्स या सर्विस और क्लेम 1 करोड़ रुपये से ज्यादा है. कोर्ट फीस 5,000 रुपये है.