क्यों हेल्थ इंश्योरेंस में नहीं मिल पाता पूरी तरह क्लेम? ये होते हैं मुख्‍य कारण

Claim: मेडिक्लेम होने के बाद बावजूद नॉन-मेडिक्लेम खर्च जैसे इनवेस्टिगेशन चार्ज, अस्पताल का रूम रेंट आदि का खर्च ग्राहक को उठाना पड़ता है

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इंश्योरेंस कंपनी को यह समझाने की जिम्मेदारी आती है कि अस्पताल में भर्ती के बिना उसका इलाज करना असंभव है

इंश्योरेंस कंपनी को यह समझाने की जिम्मेदारी आती है कि अस्पताल में भर्ती के बिना उसका इलाज करना असंभव है

Claim: हेल्थ इंश्योरेंस का मकसद गंभीर बीमारी के दौरान हमें होने वाले बेतहाशा मेडिकल खर्च और मेडिकल बिल से बचाना है, ताकि हमारी आर्थिक स्थिति पर कोई असर नहीं पड़े.

लेकिन कई मामलों में कैशलेस इंश्योरेंस क्लेम (Claim) होने के बावजूद ग्राहकों को कई सेवाओं का खर्च खुद उठाना पड़ता है. जानिए क्या है इसका कारण और कौन सी होती हैं वो सेवाएं?

मेडिक्लेम में खर्च की हकीकत

बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस के प्रमुख भास्कर नेरुरकर के मुताबिक “आमतौर पर, मेडिक्लेम होने के बाद बावजूद नॉन-मेडिक्लेम खर्च जैसे इनवेस्टिगेशन चार्ज, अस्पताल का रूम रेंट आदि का खर्च ग्राहक को उठाना पड़ता है.

स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी कॉन्ट्रेक्ट के मुताबिक होती है, जो मरीज के इलाज के खर्चों को कवर करती है न कि प्रशासनिक खर्च को. पॉलिसी में आमतौर पर कुछ गैर-चिकित्सीय खर्चों को कवर नहीं किया जाता है.

इसलिए बीमाधारक के लिए यह जानना जरूरी है कि उन्होंने किस कवरेज का विकल्प चुना है.”

किराया ग्राहक को ही देना पड़ेगा

आमतौर पर नॉन-मेडिकल खर्चों का भुगतान बीमाकर्ता द्वारा किया जाता है, जो कुल बिल राशि का 8-10% हिस्सा होता है.

इसलिए इंश्योरेंस की सब-लिमिट को देखना भी बहुत जरूरी होता है. जो उस सीमा को परिभाषित करती है जिस पर बीमाकर्ता के मेडिकल खर्च को कवर होता है और को-पे हेल्थ प्लान का हिस्सा होता है.

नेहरुकर के मुताबिक अगर ग्राहक इंश्योरेंस प्लान के अंतर्गत मिलने वाले रूम से ज्यादा किराए वाला कमरा चुनता है तो उसका किराया ग्राहक को ही देना पड़ेगा.

अस्पताल के कमरे का किराया और दूसरी संबंधित चीजें

आमतौर पर, हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी में अस्पताल के कमरे का किराया लेकर पहले से तय होता है. जो कुल सम इंश्योर्ड का कुल 1% हिस्सा होता है.

लेकिन जब आप पॉलिसी में निर्धारित कीमत से ज्यादा का कमरा लेते हैं, तो आपको कवर में बड़ी कटौती का सामना करना पड़ेगा.

क्योंकि अलग-अलग खर्च जैसे डॉक्टर फीस, इनवेस्टिगेशन फीस और OT शुल्क उस कमरे पर निर्भर करते हैं, जहां रोगी भर्ती होते हैं.

नेहरुकर ने बताया कि “अधिकांश इंश्योरेंस पॉलिसियों में अस्पताल में बीमारियों के इलाज के दौरान उपयोग की जाने वाली अधिकांश चीज़ों की कीमत कवर में शामिल नहीं होती है.

पॉलिसी कॉन्ट्रेक्ट में सम इंश्योर्ड की कीमत इलाज को ध्यान में रखते हुए तय की जाती है. इलाज के दौरान होने वाले कुछ अन्य खर्च जो अलग और स्टैंडर्डाइज नहीं होते हैं, वे स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों में शामिल नहीं होते हैं.

इनमें प्रमुख खर्च जैसे प्रशासनिक शुल्क, हाउसकीपिंग आइटम, कमरे की फीस, डिस्पोजेबल सर्जरी आइटम आदि हो सकते हैं.”

को-पेमेंट क्लॉज

ज्यादातर हेल्थ इंश्योरेंस प्रोवाइडर्स को-पेमेंट की सुविधा मिलती है. नई पॉलिसी लेने वाले ज्यादातर लोग इस कॉन्सेप्ट के बारे में नहीं जानते हैं.

को-पे क्लॉज, इंश्योर्ड व्यक्ति द्वारा क्लेम अमाउंट में हिस्सेदारी वहन करने की ओर इशारा करता है. पॉलिसी में लिखा ये ऐसा क्लेम अमाउंट है जिसे बीमाकर्ता और इंश्योर्ड व्यक्ति दोनों प्रतिशत के आधार पर साझा करते हैं.

इसलिए क्लेम सेटलमेंट के दौरान किसी भी विवाद से बचने के लिए, पॉलिसी की सभी नियम और शर्तों को ध्यान से पढ़ना चाहिए. बीमा कराने वाले को अगर संदेह हो तो वो पहले ही बीमाकर्ता से इसको स्पष्ट कर लें.

Published - July 3, 2021, 05:27 IST