विकास के साथ असमानताएं भी बढ़ती हैं. तेज ग्रोथ के बावजूद भारत उन देशों में से है जहां वेल्थ को लेकर अमानताएं बढ़ी हैं. क्रेडिट सुईस की हाल की एक रिपोर्ट के मुताबिक महामारी के समय में असमानताएं बढ़ी हैं. टॉप 1 फीसदी लोगों की संपत्ति साल 2000 से 33.5 फीसदी से बढ़कर 2019 में 39.5 फीसदी हो गई है. वहीं, साल 2020 के अंत तक ये बढ़कर 40.5 फीसदी हो गई है.
जिनी कोएफिशियंट, जिसमें 0 का मतलब है वेल्थ को लेकर समानता दर्शाती है और 1 असमानता बताती है, वो भारत में साल 2020 के अंत तक 82.3 था, 2009 में 82 और 2000 में 74.7.
ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट के मुताबिक 135 करोड़ की आबादी वाले भारत में टॉप 10 फीसदी लोग देश की 77 फीसदी वेल्थ के मालिक हैं. ये आंकड़े संतोषजनक नहीं हैं.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल अक्टूबर तक 4 करोड़ भारतीय गरीबी के चंगुल में फंस गए, वो भी तब जब कोरोनावायरस की दूसरी लहर का किसी को अंदाजा तक नहीं था.
असंगठित क्षेत्र में रोजगार के मौके देने की जिम्मेदारी सरकार पर आ गई है. लघु और छोटे उद्योग के लिए उर्वक माहौल बनाने की जरूरत है. पर भारत दैसे देश में असंगठित क्षेत्र में ही ज्यादा रोजगार मुहैया कराए गए हैं. अगर इस क्षेत्र परो बूस्ट नहीं मिलता तो रोजगार बढ़ाना मुश्किल है.
मुद्रा लोन एक ऐसा ही कदम है जिससे आम आदमी हो मदद मिलेगी और ना सिर्फ खुद के लिए रोजगार बल्कि अन्य लोगों की रोजी-रोटी का भी वे मौका दे पाएंगे. असंगठित क्षेत्र के लिए कई और ऐसे कदम की जरूरत है.
महामारी असंगठित क्षेत्र के लिए बड़ा खतरा बनी है. जरूरतमंदों को मुफ्त राशन और कैश बेनिफिट देना ऐसी आपात स्थिति के लिए जरूरी बन जाता है.