जुलाई से उलट अगस्त में फॉर्मल (formal) और इनफॉर्मल (informal) दोनों क्षेत्रों के 15 लाख से अधिक लोगों ने अपनी नौकरी खो दी. ग्रामीण और शहरी भारत में बेरोजगारी दर बढ़ गई है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के अनुसार, जुलाई में काम करने वाले लोगों की संख्या (employed) 399.38 मिलियन से गिरकर अगस्त में 397.78 मिलियन हो गई. अकेले ग्रामीण भारत में लगभग 13 लाख नौकरियों का नुकसान हुआ.
CMIE के अनुसार, राष्ट्रीय बेरोजगारी दर (National Unemployment Rate) जुलाई में 6.95% से बढ़कर अगस्त महीने में 8.32% हो गई. शहरी बेरोजगारी दर की बात करें तो अगस्त में यह लगभग 1.5 प्रतिशत अंक बढ़कर 9.78% पर पहुंच गई है. जुलाई में यह 8.3%, जून में 10.07%, मई में 14.73% और अप्रैल में 9.78% थी. मार्च के महीने में शहरी बेरोजगारी दर 7.27% थी.
अगस्त में ग्रामीण बेरोजगारी दर (Rural Unemployment Rate) 1.3 प्रतिशत बढ़कर 7.64% हो गई, जो जुलाई में 6.34% थी. जहां रोजगार दर (employment rate) में गिरावट आई, वहीं अगस्त में श्रम बल (labor force) की भागीदारी दर में मामूली वृद्धि हुई. यह दर्शाता है कि लोगों का एक बड़ा पूल जॉब मार्केट में आना चाहता है. मासिक CMII डेटा से पता चलता है कि जुलाई में लगभग 30 मिलियन की तुलना में अगस्त में 36 मिलियन लोग सक्रिय रूप से काम की तलाश में थे.
टोटल लेबर फोर्स का साइज भी बढ़कर 433.86 मिलियन हो गया. यह जुलाई से लगभग चार मिलियन अधिक है. यह दर्शाता है कि अब अधिक लोग नौकरियों की तलाश में हैं. अगस्त में लेबर फोर्स का साइज लगभग मार्च 2020 के समान था, जो लॉकडाउन से ठीक पहले का समय था. कोरोना महामारी के चलते मार्च 2020 के आखिरी दिनों में पूरे देश में लॉकडाउन लगा दिया गया था. इसके कारण आर्थिक गतिविधियां काफी कम हो गईं, फर्मों को बंद कर दिया गया और रोजगार सिमट गया.
भारत का जॉब मार्केट पिछले कुछ वर्षों से कठिन दौर से गुजर रहा है. कोविड के प्रकोप के बाद स्थिति और खराब हो गई. हालांकि अब आर्थिक गतिविधियां (economic activity) धीरे-धीरे सामान्य हो रही हैं, लेकिन जॉब मार्केट संघर्ष कर रहा है. हरियाणा और राजस्थान सहित कम से कम आठ राज्यों में अभी भी बेरोजगारी दर दो अंकों में हैं. CMIE ने पिछले महीने कहा था कि जुलाई में लोगों को मिली नौकरियों में ज्यादातर इनफॉर्मल जॉब्स थी. CMIE ने कहा, जब तक इकोनॉमी में रिकवरी नहीं आती, तब तक कृषि कार्यों में लगे इन लोगों के लिए विकल्प खोजना मुश्किल होगा.
लेबर इकोनॉमिस्ट के.आर. श्याम सुंदर ने कहा, ‘लेबर मार्केट का संघर्ष कम से कम कुछ और महीनों तक जारी रहेगा. अच्छी क्वालिटी की नौकरियों की रिकवरी में समय लगेगा.’ उन्होंने कहा, ‘FY21 की पहली तिमाही के GDP डेटा से पता चलता है कि अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे ठीक हो रही है. त्योहारी सीजन के साथ आप आने वाले महीनों में कुछ वृद्धि देखेंगे, लेकिन एक अच्छी जॉब रिकवरी अर्थव्यवस्था और बाजार की मांग पर निर्भर करेगी.’
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