नोएडा में सुपरटेक के ट्विन टावरों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सिविक एजेंसी के अफसरों के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि वे किसी भी तरह की मनमानी नहीं कर सकते हैं और न ही नागरिकों के अधिकारों को रौंद सकते हैं. इस पूरे प्रकरण में नोएडा अथॉरिटी की भूमिका का एक हानिकारक आकलन भी सामने आया है. हालांकि परेशान घर खरीदारों के लिए यह एक राहत की बात है कि उनकी शिकायतों को सुनने के लिए अभी भी गुंजाइश है. यह घर खरीदने वालों के लिए एक बड़ी जीत है और सिविक अधिकारियों के लिए सबसे बड़ा संदेश है कि वे बिल्डरों के साथ मिलकर मनमानी नहीं कर सकते हैं और ना ही लोगों को परेशान कर सकते हैं.
इस देश में घर खरीदना एक फाइनेंशियली और इमोशनली थका देने वाला एक्सपरियंस होता है. देश में घर खरीदने वालों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. दुर्भाग्य से बिल्डरों व सिविक अधिकारियों की मनमानी लोगों के दर्द को और बढ़ा देती है. वहीं कॉर्पोरेट प्रक्रिया की करीब 20 फीसदी कार्यवाही रियल एस्टेट सेक्टर से होती है. यह इस बात की ओर इशारा करता है कि घर खरीदारों को डेवलपर्स के हाथों उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने नगर निकाय के आकार को छोटा कर दिया है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को सभी के लिए एक कड़ी चेतावनी के रूप में काम करना चाहिए कि चाहे कुछ भी हो, उपभोक्ताओं को न्याय जरूर मिलेगा. फिर चाहे निजी संस्था या फिर सरकारी अधिकारियों के बीच कितना भी शक्तिशाली गठजोड़ क्यों न हो? बिल्डर्स को भी इस प्रकरण से सबक सीखना चाहिए और उपभोक्ताओं के खिलाफ डराने की रणनीति नहीं अपनानी चाहिए. उनका अस्तित्व होमबॉयर्स पर निर्भर करता है और जितना ज्यादा वे उन्हें दबाने और लूटने की कोशिश करेंगे, उनकी समस्याएं उतनी ही बड़ी होती जाएंगी.
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