रिफॉर्म दो तरह के होते हैं. एक, जिसे किसी खास लक्ष्य को पाने के हिसाब से प्लान किया जाता है. दूसरा, जिसपर बाहरी दबाव के चलते जबरदस्ती काम किया जाता है. केंद्र ने भारतीय संपत्तियों के इनडायरेक्ट ट्रांसफर पर लगने वाले टैक्स को खत्म करने का जो फैसला लिया है, वह इसी दूसरी श्रेणी में आता है. देर से ही सही, सरकार ने सही दिशा में कदम उठाया है.
इसके चलते पहले से वित्तीय तनाव से गुजर रही सरकार को वोडाफोन (Vodafone) और केयर्न एनर्जी (Cairn Energy) से मिलने वाले राजस्व में कुछ समय तक नुकसान झेलना पड़ेगा. मगर बेहतर भविष्य का रास्ता भी बनेगा.
सरकार के इस फैसले ने रातों-रात विदेशी निवेशकों का भारत में कारोबार को लेकर नजरिया बदला है. उनकी ease of doing business (कारोबार करने में आसानी) को लेकर शिकायतें अब खत्म हो जाएंगी.
वोडाफोन और केयर्न एनर्जी के रेट्रो टैक्स से जुड़े मामले पर दुनियाभर के निवेशकों को नजरें गड़ी थीं. दोनों कंपनियों ने जिस तरह की परेशानियां जाहिर की थीं, उनसे भारत में निवेश करने की इच्छा रखने वालों तक गलत संदेश पहुंचा था.
विदेशी निवेश (FDI) कोई पोर्टफोलियो इनवेस्टमेंट नहीं है कि उसमें से झट से पैसे निकाले जा सकें. ये ऐसी अचल संपत्तियों में लगाया जाता है, जिन्हें आसानी से देश के बाहर नहीं ले जाया जा सकता. किसी निवेशक का FDI लगाना इस बात की निशानी होता है कि उसे उस देश पर पूरा भरोसा है.
FDI बढ़ने से सरकार के लिए राजस्व बढ़ने के साथ नौकरियों के अवसर पैदा होते हैं. GDP को बल मिलता है. Income Tax Act में हुए संशोधन से सरकार Cairn Energy के कारोबार समेटने के फैसले से तो बचेगी ही, अन्य तरह के विदेशी निवेशक भी देश को लेकर सकारात्मक महसूस करेंगे.
कुछ आलोचकों का कहना है कि केंद्र का फैसला राइट टू टैक्स को छोड़ने जैसा है. मगर समझने की बात यह है कि एक तय साल से पहले के कर्जों को खत्म किया गया है, ना कि संभावित कर को. रेट्रो टैक्स को जारी रखना टैक्स राज को बढ़ावा देना होगा. टैक्स को लेकर आसान माहौल बनाना किसी भी आधुनिक सरकार की पहचान है.