भारत में किरायेदारों को किसी भी कानूनी एग्रीमेंट को कराने के लिए पहले मकान मालिक को सिक्योरिटी डिपोजिट करानी पड़ती है. साथ ही, ये सिक्योरिटी डिपोजिट दो से बारह महीने के बीच की होती है. ये पेमेंट एक्ट किरायेदार की तरफ से मकान मालिक के पक्ष में एक गारंटी के तौर पर काम करता है, जो मकान मालिक को किसी भी नुकसान से बचने में मदद करता है. लेकिन, इन एग्रीमेंट के कारण किरायेदारों को परेशानी का सामना करना पड़ता है, खासकर उन्हें, जिनके पास सिक्योरिटी डिपॉजिट कराने के लिए ज्यादा पैसे नहीं होते हैं और इसके चलते दोनों के रिश्तों में अविश्वास पैदा होता है.
इसलिए कहते हैं कि रेंटल बॉन्ड्स किरायेदार और मकान मालिक के बीच होने वाले अविश्वास को दूर करता है. यह भारत में किराये के घरों को बढ़ावा देने में योगदान दे सकता है. ये बॉन्ड कम लागत में दोनों पार्टियों की चिंताओं के साथ बड़ी सिक्योरिटी जमा करने की टेंशन को दूर करते हैं.
क्या होते हैं रेंटल बॉन्ड्स?
रेंटल एग्रीमेंट मकान मालिक के लिए एक गारंटी है कि किरायेदार समझौते की शर्त का पालन करेगा. एक गारंटी किरायेदार की ओर से एक फर्म देती है, जो किरायेदार के डिफॉल्ट होने के केस में मकान मालिक को नुकसान होने से बचाती है.
आमतौर पर, किरायेदार अपार्टमेंट में जाने से पहले मकान मालिक या प्रॉपर्टी के मैनेजर को बॉन्ड का भुगतान करता है. इस बॉन्ड को किराए और ‘डाउन पेमेंट’ के रूप में नहीं माना जाना चाहिए. ये बॉन्ड रकम के रूप में होना चाहिए और लीज के पीरियड के दौरान बनाए रखा जाना चाहिए.
मकान मालिक को कैसा फायदा?
इससे मकान मालिक को सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि उसे किरायेदार क्रेडिट-वेरिफाइड मिलता है. वह किसी अप्रत्याशित नुकसान की भरपाई के लिए रकम को रेंटल बॉन्ड में पेनल्टी के रूप में भी रख सकता है.
किरायेदार को कैसे फायदा?
रेंटल बॉन्ड से किरायेदार को भी फायदा होता है. जो सिक्योरिटी किरायेदार, मकान मालिक को देता है वो इसे लॉक इन पीरियड के दौरान सुरक्षित रखता है. रेंटल बॉन्ड के तहत किरायेदार को पूरी रकम को जमा करने की बजाय, मकान मालिक को केवल एक छोटी सी रकम देनी होगी. जो इस कोरोना महामारी के दौर में उन परिवारों के लिए एक सुरक्षित उपाय है, जिन्होंने इस तबाही का दंश झेला है.
रेंटल बॉन्ड को मकान मालिक और किरायेदार की जरूरत के हिसाब से तैयार करवाया जा सकता है. रेंटल बॉन्ड आमतौर पर किराया न चुकाने, लॉक-इन अवधि में बचे किराये, बिजली बिल न चुकाने, संपत्ति की सामान्य टूट-फूट जैसी समस्याओं को कवर करता है.
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