हमारे देश में धार्मिक ग्रंथों में रामायण का अपना अलग ही महत्व है. इसके अनुसार भगवान श्री राम अपनी पत्नी सीता को रावण के चंगुल से छुड़ाने के लिए कई दुर्गम रास्तों से होते हुए श्रीलंका पहुंचे थे. रामायण की तरह भगवान राम द्वारा तय किए गए रास्ते भी अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाते हैं. इनकी महत्ता को समझते हुए योगी सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है. दरअसल, जिन रास्तों से होकर प्रभु श्री राम वनवास गए थे, उन रास्तों का विकास किया जाएगा. इसका ड्राफ्ट तैयार कर लिया गया है. इस मसौदे पर लोक निर्माण विभाग लंबे समय से काम कर रहा था. अयोध्या से चित्रकूट तक बनने वाले इस मार्ग को वनगमन मार्ग कहा जाएगा.
चित्रकूट धाम को राम नगरी से जोड़ने का यह काम कुल 210 किलोमीटर का सफर तय करके किया जाएगा. वनगमन मार्ग अयोध्या से शुरू होकर सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, श्रृंगवेरपुर धाम, मंझनपुर, राजापुर होते हुए चित्रकूट तक जाएगा. यह सभी धार्मिक आस्था और संस्कृति के बड़े केंद्र के रूप में बनकर उभर रहे हैं. राम मंदिर निर्माण के बाद इनका महत्व भी काफी बढ़ जाएगा. दरअसल इन सभी जगहों को सड़क मार्ग से जोड़ने की यह योजना भविष्य की अन्य संभावनाओं के लिए रास्ते खोल देंगी. आने वाले सभी भक्तों को राम मंदिर के साथ-साथ वनगमन के पूरे पथ को भी देखने और समझने का मौका मिलेगा.
अयोध्या से चित्रकूट तक के वनगमन मार्ग का निर्माण 3 चरणों में किया जाएगा. मार्ग निर्माण के साथ ही इसके आस पास के इलाकों का भी विकास किया जाएगा. इससे इन इलाकों का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विकास तो होगा ही, साथ-साथ इनके आर्थिक लाभ के द्वार भी खुल जाएंगें. यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने इस बारे में 29 जून को जानकारी देते हुए बताया था कि लोक निर्माण विभाग के द्वारा इस डेवलपमेंट का पूरा खाका तैयार कर लिया गया है. जल्द ही भूमि अधिग्रहण, एलाइनमेंट और अन्य प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाएगा. उन्होंने कहा कि वनगमन मार्ग मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के जीवन दर्शन से जुड़ा हुआ है. इन रास्तों पर निर्माण कार्य करके इन क्षेत्रों का विकास किया जाएगा.
राम वनगमन मार्ग पर पडने वाले धार्मिक स्थलों पर मिश्रित प्रजातियों के पौधों का पौधरोपण किया जाएगा. पौधरोपण का यह क्रम अयोध्या से लेकर कौशाम्बी और चित्रकूट चलेगा. महर्षि बाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में अयोध्या और इस मार्ग पर 88 वृक्ष प्रजातियों का वर्णन मिलता है. इसमें वृक्षों के अलावा झाड़ियां, लता और घास भी शामिल हैं। रामायण में उल्लिखित 88 वृक्ष प्रजातियों में से कई या तो विलुप्त हो चुकी हैं या देश के अन्य भागों तक सीमित हो गई हैं. वन जाते समय भगवान श्रीराम ने तमसा नदी के किनारे पहली रात गुजारी थी.
इस जगह को रामचौरा (गौराघाट) के नाम से भी जाना जाता है. इसी तरह बिसुही नदी के किनारे गविरजा माता के मंदिर पर भी पौधरोपण होना है. बिसुही नदी को पार करने के पूर्व इस मंदिर में भी भगवान श्री राम ने पूजा अर्चना की थी. जरूरत पड़ने पर पौधों की सुरक्षा के लिए ब्रिक्स गार्ड भी लगाए जाएंगे.
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