image: pixabay, असाधारण मूल्यवृद्धि पर काबू पाने के लिए कई कारगर नीतिगत उपायों को लागू किया जा रहा है जिनमें कालाबाजारी को नियंत्रित करना, निर्यात पर काबू और आयात को बढ़ावा देकर उपलब्धता बढ़ाना, बफर स्टॉक बनाना और उसका समयबद्ध जारी होना सुनिश्चित करना शामिल है.
दालों की लगातार बढ़ती कीमतों पर काबू के लिए केंद्र सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम (ECA) के तहत दालों पर स्टॉक लिमिट लगा दी है. इसे 2 जुलाई से तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया गया है और यह 31 अक्टूबर तक प्रभावी रहेगी.
मूंग को छोड़कर सभी दालों पर लागू
आदेश के मुताबिक, मूंग को छोड़कर सभी दालों के लिए स्टॉक लिमिट तय की गई है. थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं, मिल मालिकों और आयातकों जैसे विभिन्न हितधारकों के लिए अलग-अलग स्टॉक लिमिट तय की गई है.
आदेश के अनुसार थोक व्यापारी केवल 200 मीट्रिक टन दालों का स्टॉक कर सकते हैं. इसमें भी किसी एक दाल का स्टॉक 100 मीट्रिक टन से अधिक नहीं होना चाहिए.
खुदरा विक्रेता केवल 5 मीट्रिक टन तक स्टॉक कर सकते हैं, जबकि मिल संचालकों के लिए यह सीमा उत्पादन के अंतिम तीन महीने का स्टॉक या वार्षिक स्थापित क्षमता का 25 फीसदी, में से जो भी अधिक हो, वह लागू होगी.
आयातकों के लिए स्टॉक सीमा
आयातकों के लिए स्टॉक सीमा 15 मई, 2021 से पहले रखे गए/आयातित स्टॉक के लिए थोक विक्रेताओं के बराबर यानी 200 मीट्रिक टन होगी, जबकि 15 मई के बाद आयातित दालों के लिए होल सेलर्स पर लागू स्टॉक सीमा सीमा शुल्क की तारीख से 45 दिनों के बाद लागू होगी.
स्टॉक लिमिट लगाने के साथ ही केंद्र सरकार ने अरहर, उड़द और मूंग को प्रतिबंधित श्रेणी से हटा दिया है और अक्टूबर 2021 तक मुक्त आयात की अनुमति दी है. स्टॉक खत्म करने में लगने वाले समय को भी 10-11 दिन से घटाकर 6-9 दिन कर दिया गया है.
इसके अलावा दालों के आयात के लिए म्यांमार, मलावी और मोजाम्बिक के साथ पांच साल का करार किया गया है. केंद्र ने दालों की कीमतों को और कम करने के लिए मिलिंग, प्रसंस्करण, परिवहन, पैकेजिंग और सेवा शुल्क की लागत वहन करके राज्य सरकारों को 2020-21 में दालों का बफर स्टॉक भी जारी किया है.