ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए बनाए गए नए नियमों (E-Commerce Rules) को लेकर जल्द ही फैसला आ सकता है, लेकिन उससे पहले प्रधानमंत्री कार्यालय ई-कॉमर्स नियमों में प्रस्तावित संशोधनों के संबंध में विभिन्न कंपनियों के साथ विचार-विमर्श करेगा. इकोनॉमिक टाइम्स की खबर के मुताबिक ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए नियमों को सख्त करने का प्रयास किया जा रहा है. उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा, सभी जानते हैं कि इस विषय पर विभिन्न स्तरों पर व्यापक परामर्श चल रहे हैं. सभी के हित में संभव और उचित निर्णय समय रहते लिए जाएंगे. जब भी आवश्यकता होगी सभी संबंधित लोगों को सूचित किया जाएगा.
खबर के अनुसार उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम 2020, जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा 101 के अंतर्गत आता है को पिछले साल जुलाई में उपभोक्ता अधिकारों के संरक्षण के लिए मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किया गया था. टाटा, अमेजन और वॉलमार्ट के स्वामित्व वाली फ्लिपकार्ट और अन्य ने कुछ प्रस्तावित नियमों का विरोध किया है. नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने पहले कहा था कि प्रस्तावित संशोधन नीति निर्माण में अप्रत्याशितता का संदेश देते हैं, जबकि वित्त मंत्रालय ने चिंता व्यक्त की थी कि वे ई-कॉमर्स और संबद्ध क्षेत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं. विचारों में अंतर होने के कारण प्रस्तावित परिवर्तनों पर निर्णय लेने में देरी हो रही है.
अकाउंटिंग और एडवाइजरी फर्म ग्रांट थॉर्नटन के अनुमान के मुताबिक, ई-कॉमर्स सेक्टर के 2020 में 64 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2025 तक 188 बिलियन डॉलर होने की उम्मीद है. बता दें कि इस त्योहारी सीजन में सबसे ज्यादा फायदा ई-कॉमर्स कंपनियों का रहा है. ई-कॉमर्स बाजारों की सेल ने खुदरा विक्रेताओं के व्यापार को बुरी तरह प्रभावित कर दिया है. पिछले कई सालों से खुदरा विक्रेता सरकार से सख्त कानून बनाने की गुहार लगा रहे हैं लेकिन अभी तक इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है.
बाजार से जुड़े जानकारों का कहना है कि ई-कॉमर्स बाजार जनता को लुभाने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन देकर खरीदारी के लिए मजबूर करते हैं. इसका खामियाजा घरेलू बाजार के खुदरा विक्रेताओं को उठाना पड़ता है. कंपनियां जनता को 20-60 प्रतिशत की छूट देती हैं जबकि दुकान 10 प्रतिशत से अधिक की छूट नहीं दे पाता. इसके चलते ग्राहक खुदरा दुकानदारों से लेने की बजाए ऑनलाइन खरीदना पसंद करते हैं.
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