Petition: अस्पतालों की बढ़ती लापरवाही, खराब प्रबंधन और महंगे इलाज आदि मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका (Petition) दायर की गई. याचिका में कहा गया है कि ऐसे समय में जब 70 फीसद स्वास्थ्य सेवाएं निजी हाथों में है, तब जरूरी हो जाता है कि उनके लिए कुछ न्यूनतम मानक तय किये जाने चाहिए. याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस भेजकर इस जनहित याचिका पर जवाब मांगा है. याचिका में स्वास्थ्य सेवा के न्यूनतम मानकों को लागू करने और सभी अस्पतालों द्वारा नैदानिक स्थापना अधिनियम, 2010 (Clinical Establishments Act, 2010) के अनुसार उपचार के लिए रेट चार्ट प्रदर्शित करने की मांग की गई है.
चीफ जस्टिस एन वी रमण और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने सभी राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को नोटिस जारी किया है. नोटिस जारी करते हुए कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि सरकारें सकारात्मक प्रतिक्रिया देंगी.
याचिकाकर्ता के वकील संजय पारिख ने कहा कि केंद्र सरकार, राज्यों के परामर्श से, पंजीकरण के लिए शर्तें, सुविधाओं और सेवाओं के न्यूनतम मानकों, कर्मियों की न्यूनतम आवश्यकता, रिकॉर्ड और रिपोर्टिंग के रखरखाव के प्रावधान, प्रत्येक प्रकार की प्रक्रिया के लिए अब तक कोई रेट चार्ट जारी नहीं किया है.
पारिख ने बताया कि सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने की जरूरत है केवल 30 फीसद मरीजों को ही सरकारी स्वास्थ्य केंद्र से बेहतर इलाज मिल पाता है.
स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के निजीकरण के कारण मरीजों को निजी अस्पतालों और क्लीनिकों से भगा दिया जाता है, मनमाने तरीके से पैसे लिए जाते हैं, क्योंकि अब तक 2010 के नैदानिक स्थापना अधिनियम (Clinical Establishments Act, 2010) और 2012 में बनाए गए प्रासंगिक नियमों को अमल में नहीं लाया गया है.
एडवोकेट सृष्टि अग्निहोत्री द्वारा दायर इस जनहित याचिका में केंद्र को 2010 के अधिनियम और 2012 के नियमों के सभी प्रावधानों को लागू करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है.
इसके वाला याचिका में मांग की गई है इलाज के लिए न्यूनतम मानक को जल्द से जल्द तय किया जाए. न्यूनतम मानकों के निर्धारण और नोटिफिकेशन के अभाव में 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में स्वास्थ्य सेवाएं मनमाने तरीके से काम कर रही हैं.
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