यह मौसम बहीखातों का है. दिवाली पर हम अपने घरों में मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं और व्यवसायी अपने बहीखातों की. लेकिन इन बहीखातों की बात आज हम अर्थात में क्यों कर रहे हैं? मनी9 के रेडियो कार्यक्रम ‘अर्थात आरोग्य का बहीखाता’ में शुभम शंखधर ने जब अंशुमान तिवारी से बात की तो उन्होंने कहा कि महामारी ने सेहत को नई करेंसी बना दिया है और दुनियाभर में अर्थव्यवस्था का नया आधार भी स्वास्थ्य को माना जा रहा है.
अंशुमान ने कहा, ‘‘हम जिस बहीखाते की बात कर रहे हैं वो आरोग्य का बहीखाता है. कोरोना महामारी के बाद दुनियाभर के लोग अपनी सरकारों को इसी बहीखाते से पढ़ने की कोशिश कर रहे हैं. इसलिए नहीं कि टैक्स कितना दिया जाता है और सरकारें कितना खर्च करती हैं, बल्कि वे देख रहे हैं कि सरकारों ने महामारी से सबक लेकर साल भर में उनके आरोग्य का बहीखाता कितना ठीक किया है?’’
उन्होंने कहा कि बीमारियां तरक्की की दुश्मन हैं लेकिन महामारी के बाद पूरी दुनिया के लोग कुछ सवाल पूछ रहे हैं. अगर इन सवालों का भारतीयकरण (भारत के संदर्भ में) करें तो एक सवाल हो सकता है कि सरकार हर साल प्रतिरक्षा पर कितना खर्च करती है? सरकार स्वास्थ्य पर कितना खर्च करती है? जो जीडीपी के अनुपात में केवल 1.1 फीसदी है.
स्वास्थ्य का देश की आर्थिक तरक्की से क्या रिश्ता है? इस सवाल पर उन्होंने कहा, ‘‘कोविड ने बहुत कायदे से समझाया है कि देश की आर्थिक प्रगति का सीधा रिश्ता स्वास्थ्य से है. अभी तक सरकारों ने यह सोचने ही नहीं दिया कि सेहत विशुद्ध रूप से आर्थिक संसाधन हैं. लेकिन जब दुनिया में मौत के आंकड़े सामने आए, लॉकडाउन लगे तब जाकर पता चला कि स्वास्थ्य का अर्थव्यवस्था पर कितना गहरा असर है?’’
20वीं सदी की बात करें तो इस दौरान विकसित अर्थव्यवस्थाओं की विकास दर का एक तिहाई हिस्सा अकेले स्वास्थ्य से आया. कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी का ही एक अध्ययन है जिसके अनुसार अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों की भूमिका अहम है. बीमारियां तरक्की और समृद्धि को खा जाती हैं. इसे अगर आंकड़ों में देखें तो एक अध्ययन यह भी है कि साल 2017 में बीमारी और चिकित्सीय सेवाओं के अभाव से 1.70 करोड़ लोगों की असामयिक मौत हुई जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को 12 खरब डॉलर का नुकसान हुआ. यह विश्व की जीडीपी का 15 फीसदी है. इसलिए कोविड के बाद पूरी दुनिया सेहत को नई करेंसी मान रही है और अर्थव्यवस्था का नया आधार मान रही है. ’’
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