Affordable Housing: 32 साल के सागर पवार, पुणे के बाहरी इलाके बनेर के निवासी हैं, 2019 में एक मिड-साइज डिजिटल मार्केटिंग कंपनी में ग्राफिक डिजाइनर के तौर पर बेहतर मौके की तलाश में वो मुंबई चले गए. नॉर्थ मुंबई के कांदिवली में 400 वर्ग फुट के 1 बेडरूम हॉल किचन में अपने भाई सुभाष के साथ रहने लगे, सागर के पास अपने रहने की जगह पर समझौता करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था, उन्हें हॉल में अपनी पत्नी और एक साल के बेटे के साथ सोना पड़ता था.
रहने की स्थिति से समझौता करना, पवार दंपति के लिए जीवन जीने का एक तरीका बन गया था, जब तक कि 2020 में एक बड़ा बदलाव नहीं आया, जब महामारी भारत में भी पहुंच गई. मार्च 2020 से शुरू हुए पहले लॉकडाउन के दौरान, यह साफ हो गया कि 400 वर्ग फुट का घर दोनों भाइयों के लिए पर्याप्त नहीं होगा. एक कंजेस्टेड जगह से वर्क फ्रॉम होम करना सागर के लिए लगभग नामुमकिन होता जा रहा था, क्योंकि उसका भाई, जो एक मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव था उसे घर पर ही रहना पड़ता था क्योंकि उसका क्षेत्र का दौरा बंद हो गया था.
यह वो समय था जब सागर वापस बानेर जाकर अपना घर खरीदने के बारे में सोचने लगे. वर्क फ्रॉम होम जीवन जीने का एक तरीका बन गया था, और इसके लिए एक कम्फर्टेबल घर की जरूरत थी. इसी जरूरत ने सागर को वापस बनेर आकर अपना घर लेने के लिए प्रेरित किया, और उन्होंने बनेर में 400 स्क्वेयर फुट का अपना खुद का एक घर खरीदा.
सागर, उन कई होमबॉयर्स में से एक हैं, जिन्होंने महामारी के दौरान होमबॉयर बनने का संकल्प लिया. सागर जैसे कई लोग हैं जो अपने होमटाउन वापस चले गए.
पिछले छह सालों में (2014-2019) में रेसिडेंशियल सेल के ट्रेंड से पता चलता है कि टियर I शहरों में 28% की वृद्धि हुई, जबकि टियर II शहरों में 51% की दर से बहुत तेजी से वृद्धि हुई. इनमें आउटर मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन (MMR), जयपुर, इंदौर, नासिक, कोयंबटूर और चंडीगढ़ जैसे शहर शामिल हैं.
प्रधान मंत्री आवास योजना जैसी सरकारी योजनाओं और वर्क फ्रॉम होम के लिए स्पेशियस लिविंग की जरूरत ने इस ट्रेंड को बढ़ावा दिया. रिमोट वर्क या लिमिटेड ट्रेवल आज की आदर्श स्थिति बन गई है.
दूसरा ट्रेंड जिसमें महामारी के दौरान इजाफा देखने को मिला वो है डिजिटाइजेशन जिसने घर खरीदने की क्षमता को बढ़ा दिया है. ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (BARC) और नीलसन द्वारा मई 2020 में जारी किए गए आंकड़ों से पता चला है कि शहरी आबादी का 77 फीसदी और ग्रामीण आबादी का 61 फीसदी इंटरनेट पर रोजाना 4 घंटे तक समय बिता रहे थे, जबकि महामारी से पहले ये समय 3 घंटे था.
अफोर्डेबल हैंडसेट और इंटरनेट पैक की आसान उपलब्धता ने एक पूरी नई आभासी दुनिया खोल दी है जिसने लोअर इनकम ग्रुप (LIG) मिडिल इनकम ग्रुप (MIG) और इकोनॉमिकली वीकर सेक्शन (EWS) के लिए घरों की सर्च और शुरुआती रिसर्च को आसान और संभव बना दिया है.
PMAY की क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी के माध्यम से इस सेक्टर पर सरकार ने जोर दिया है, जिससे इस सेगमेंट के लिए भी संभावित घर खरीदारों की गुंजाइश बढ़ गई है. अफोर्डेबल घर के सपने को पूरा करने वाले दूसरे फैक्टर रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (RERA) का संविधान है जिसने कंज्यूमर के विश्वास को बढ़ाया और निर्माणाधीन घरों पर GST में छूट दी. जिसकी चलते अफोर्डेबल घरों के लिए GST 8% से घटाकर 1% कर दी गई है.
आज अफोर्डेबल हाउसिंग की चर्चा है, ऐसे में कई प्रॉपर्टी पोर्टल हैं जो LIG, MIG और EWS सेगमेंट को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, ऐसे पोर्टलों पर लॉर्ज इन्वेंटरी लिस्ट पोटेंशियल कंज्यूमर के लिए अपने बजट में घरों की तलाश करना मुश्किल बना देती है. इसके अलावा, बिल्डर्स जो खास तौर से अफोर्डेबल हाउसिंग सेगमेंट को पूरा करते हैं, उन्हें अक्सर बड़े डेवलपर्स के बीच अपने प्रोजेक्ट को लिस्ट करने में डर लगता है.
मार्केट में इस गैप को पूरा करने के लिए, एग्रीम हाउसिंग फाइनेंस जैसी कंपनियों ने अपना घर खोज (www.apnagharkoj.com) लॉन्च किया है, जो भारत का पहला और एक्सक्लूसिव प्रॉपर्टी सर्च पोर्टल है जो 5-50 लाख की रेंज के अफोर्डेबल हाउसिंग प्रोजेक्ट के लिए डेडिकेट है.
लेखक: मैल्कम अथाइड CEO और को-फाउंडर, एग्रीम हाउसिंग फाइनेंस
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