फ्यूल की बढ़ती कीमतें सरकार और जनता, दोनों के लिए सिरदर्द बन गई हैं. महंगे पेट्रोल-डीजल पर निर्भरता घटाने के लिए सरकार अब बायोफ्यूल पर जोर दे रही है. परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने हाल में कहा है कि अगले छह महीनों में ऑटोमोबाइल कंपनियों के लिए बायोफ्यूल पर चलने वाली व्हीकल्स ग्राहकों को ऑफर करना अनिवार्य हो जाएगा. इस बयान से पता चलता है कि जल्द से जल्द बायोफ्यूल का इस्तेमाल बढ़ाने पर फोकस किया जा रहा है.
केंद्रीय मंत्री ने कहा है कि उपभोक्ताओं के पास पेट्रोल और बायोइथनॉल के बीच चुनने का विकल्प होगा. बायोफ्यूल को अपनाना इसलिए भी जरूरी है कि देश में चावल, मक्का,चीनी जैसी फसलों की पैदावार अच्छी है. बायोइथनॉल इन्हीं से बनता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पहले कह चुके हैं कि 2025 तक 20 प्रतिशत इथनॉल मिश्रण वाले पेट्रोल का लक्ष्य हासिल करना है.
बायोफ्यूल को केवल पेट्रोल-डीजल के विकल्प के तौर पर ही नहीं, एक नई तरह की अर्थव्यवस्था खड़ी करने के साधन की तरह भी देखा जा सकता है. बायोफ्यूल का इस्तेमाल बढ़ने से रूरल इकॉनमी को बढ़ावा मिलेगा.
सरकार की ओर से इस बदलाव को तेज गति दिया जाना प्रशंसनीय है. हालांकि, एक चिंता भी है कि कहीं बायोफ्यूल पर अत्यधिक निर्भरता आगे चलकर फूड क्राइसिस में न बदल जाए.
कॉस्ट इफेक्टिव होने के साथ व्हीकल ओनर्स को यह अच्छा अनुभव दे पाता है या नहीं, इसे भी देखना होगा. EU के अनुभवों से हम सबक ले सकते हैं, जहां इसके ज्यादा इस्तेमाल का प्रभाव वनस्पतियों और जानवरों पर पड़ा है.