बेरोजगारी हमारे देश के नीति-निर्माताओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती है. यह मानवीय और आर्थिक, दोनों स्तरों पर हमें कमजोर करती है. एंप्लॉयमेंट रेट ऊंचा होने से अर्थव्यवस्था में खुशनुमा माहौल रहता है. सरकारें आयकर से तो राजस्व इकट्ठा करती ही हैं. साथ ही उनके द्वारा कंज्यूम होने वाले गुड्स एंड सर्विस और उनको रोजगार देने वाली कंपनियों से भी इंडायरेक्ट टैक्स वसूलती हैं.
टैक्स से देश का इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में मदद मिलती है. इनसे निजी निवेश और रोजगार के नए मौके बनते हैं. कर की मदद से सरकारें गरीब और पिछड़े वर्गों के लिए लाभकारी योजनाएं बनाती हैं. एंप्लॉयमेंट रेट बढ़ने से ऐसे लोगों की संख्या खुद-ब-खुद घटेगी.
नेशनल एंप्लॉयमेंट पॉलिसी देश की बोरेजगारी की समस्या को खत्म करने में बड़ी भूमिका निभा सकती है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, सरकार देश की पहली रोजगार योजना तैयार करने के लिए एक्सपर्ट कमेटी का गठन कर रही है. सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस कमेटी में लगभग सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व हो सके.
कमेटी को बेरोजगारी के आंकड़ों पर बिना किसी भेदभाव के काम करना होगा. योजना बनाने में इन आंकड़ों की जरूरत होगी. साथ ही, देशभर से रोजगार के आंकड़े जुटाने का काम भी तेजी से होना चाहिए. डेटा से किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए. नहीं तो पूरी प्रक्रिया का कोई मतलब नहीं रह जाएगा.
योजना को उन सभी सेक्टरों पर फोकस करना होगा, जो देश की प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देते हैं. वैश्विक अर्थव्यवस्था, सप्लाई लाइन और लिंकेज बदल रहे हैं. अगर सेक्टरों को इनसे अलाइन किया जाए, तो रोजगार सृजन के साथ देश एक पावरहाउस के तौर पर उभरेगा. पॉलिसी को उन क्षेत्रों के सुधार पर भी काम करना होगा, जो जॉब जनरेशन में अहम भूमिका निभा सकते हैं, मगर अभी ऑप्टिमल लेवल से नीचे हैं.
रोजगार योजना को प्राइवेट सेक्टर को भी ध्यान में रखकर तैयार करना होगा. इन्हें कैपिटल एक्सपेंडिचर सुधारना है, जो कोरोना महामारी के कारण चरमराई हुई है. अनऑर्गनाइज्ड सेक्टर में देश का करीब 80 प्रतिशत लेबर फोर्स कार्यरत है. चुनौतियों हमारे सामने बड़ी हैं, मगर उतने ही अधिक मौके भी हैं. देश को इस योजना का बेसब्री से इंतजार होगा.
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