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MSP तय करने की नीति में होना चाहिए सुधार

MSP: पंजाब और हरियाणा में MSP बिगड़े हुए स्वरूप में दिखाई पड़ती है, क्योंकि वहां मुफ्त या फिर सस्ती बिजली दी जाती है.

  • Vivian-Fernandes
  • Last Updated : September 13, 2021, 11:45 IST
इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (IFPRI) के साउथ एशिया के पूर्व निदेशक और तीन कृषि अधिनियमों पर सुप्रीम कोर्ट पैनल के सदस्य पी के जोशी ने कहा कि कृषि से रिटर्न ग्रामीण आय के अनुरूप नहीं है क्योंकि खेत का आकार छोटा हो रहा है. गैर-कृषि क्षेत्र में आय के अवसर सीमित या नीचे जा रहे हैं.
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न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) ऐसा होना चाहिए जिससे किसानों की फसलों के दाम में बढ़ोतरी हो सके और वे ऐसी फसल उत्पादित करने में प्रोत्साहित हों जो पर्यावरण की दृष्टिकोण से बेहतर हो, साथ ही गरीब को दूर करने वाली हो. वैसे तो MSP शब्द को अब नकारात्मक तरह से देखा जाने लगा है, क्योंकि अक्सर इसका उद्देश्य राजनीतिक होता है. गेहूं और चावल में हमें बगैर सरकारी समर्थन के आत्मनिर्भरता प्राप्त नहीं हो सकती. सरकारी खरीद की वजह से किसान इसके उत्पादन में बढ़ोतरी कर पाए हैं, क्योंकि उन्हें इनकी मार्केटिंग करने की चिंता नहीं रहती.

पंजाब और हरियाणा में MSP बिगड़े हुए स्वरूप में दिखाई पड़ती है

हालांकि, पंजाब और हरियाणा में MSP बिगड़े हुए स्वरूप में दिखाई पड़ती है, क्योंकि वहां मुफ्त या फिर सस्ती बिजली दी जाती है.

इससे किसान भू-जल का अत्यधिक दोहन कर रहे हैं, जबकि ये फसल वहां की जलवायु के मुताबिक नहीं है. पंजाब में चावल का प्रति हेक्टयर उत्पादन देश में सबसे अधिक है.

पंजाब के करीब आठ लाख किसान सरकार को गेहूं बेचते हैं. दूसरी ओर, हरियाणा में करीब 9 लाख किसान MSP पर सरकार को गेहूं बेच रहे हैं.

गन्ने की फसल पर सरकार उचित और पारश्रमिक मूल्य (FRP) घोषित करती है. किंतु, उत्तरप्रदेश में स्टेट एडवाजस्ड (SAP) मूल्य दिया जाता है. मूल्य आश्वासन की वजह से भारत सबसे अधिक चीनी उत्पादन करने वाला देश बन गया है.

लेकिन SAP के कारण चीनी मिलें सीधे बाजार में चीनी नहीं बेच पातीं, जिसका सीधा असर किसानों के भुगतान पर पड़ता है. इससे चीनी के बाजार पर बुरा असर पड़ता है. मिलों को सीधे चीनी बेचने की अनुमति दी जानी चाहिए.

सरकार का कहना है कि एमएसपी को किसानों की फसल लागत से 50 फीसदी अधिक किया जाएगा, किंतु इसमें किसान के परिवार की मजदूरी के मूल्य को शामिल नहीं किया जाता. इससे एमएसपी सही मूल्य को नहीं दर्शाता.

नीति को सुधारना चाहिए

हमें एमएमपी तय करने की नीति को सुधारना चाहिए. सरकारी खरीद इतनी होनी चाहिए कि जिससे उपभोक्ताओं की जरूरतें पूरी हो सके और पर्याप्त बफर स्टॉक तैयार किया जा सके.

साथ ही हमें कुछ ही राज्यों से खरीदी करने के बजाए, सभी राज्यों से बराबर खरीदी पर ध्यान देना चाहिए. इससे पूर्वी राज्यों को फायदा होगा, जो चावल उत्पादन के लिए अनुकूल हैं.

इन राज्यों में गरीबी भी अधिक है. अध्ययन बताते हैं कि गरीबी को दूर करना है हमें कृषि को बढ़ावा देना होगा.

एमएसपी और सरकारी खरीद की नीति ऐसी होनी चाहिए जिससे किसान दलहन और तिलहन का भी अच्छा उत्पादन करें. भारत को 60 फीसदी खाद्य तेल आयात करना पड़ता है, हमें देश में तिलहन उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए.

ऐसे ही दालों के उत्पादन को भी प्रोत्साहित करना चाहिए, जिससे आयात को कम किया जा सके. दलहन और तिलहन को कम पानी की जरूरत होती है और इनकी खेती से मिट्टी को नाइट्रोजन प्राप्त होता है.

साथ ही मक्के की सरकारी खरीद से पंजाब और हरियाणा इसके उत्पादन में बढ़ोतरी करने में ध्यान देंगे. छत्तीसगढ़ सरकार का कहना है कि मोटे अनाजों की सरकारी खरीद बढ़ाने से किसान चावल से मोटे अनाजों की ओर बढ़ेंगे. ध्यान रहे कि मोटे अनाज, गेहूं और चावल से अधिक पोषक होते हैं.

फसल तैयार होने के तुरंत बाद सरकार को एमएसपी पर ध्यान देना चाहिए. इस दौरान सरकार को मार्जिन को देखना चाहिए. एमएसपी का मकसद निजी व्यापार को हटाना नहीं होना चाहिए.

Published - September 13, 2021, 11:45 IST

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