स्वतंत्रता के बाद भारत पर सभी सरकारों ने शासन किया, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार सबसे अधिक सुधार करने वाली है. इस सरकार ने सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों में सभी प्रकार के सुधारों पर काम किया. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में एक चीज है जो सरकार को सबसे ज्यादा परेशान कर रही है वह है विनिवेश कार्यक्रम का उम्मीद के मुताबिक आगे न बढ़ पाना.
एयर इंडिया और BPCL दो हाई-प्रोफाइल कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारी बेचने की योजना आगे नहीं बढ़ पा रही है. सरकार को इसे जल्द से जल्द निपटाना चाहिए. इससे न सिर्फ लंबे समय से चले आ रहे सिरदर्द से छुटकारा मिलेगा बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 16 अगस्त को घोषित परियोजनाओं के लिए भी फंड का इंतजाम हो सकता है.
राजनीतिक रूप से विनिवेश या निजीकरण का कोई भी सवाल संवेदनशील विषय है. यह एक ऐसा मुद्दा भी है जो कुछ हद तक बाजार के मिजाज पर निर्भर है. भारतीय इक्विटी बाजार अभूतपूर्व तेजी से आगे बढ़ते हुए इतिहास के कुछ बेहतरीन दौर से गुजर रहा है, जिसने रिटेल इन्वेस्टर्स को पैसा पैदा करने के भरपूर अवसर दिए हैं जिसके बारे में उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा. ऐसे में सरकार को यह अवसर हाथ से जाने नहीं देना चाहिए और एयर इंडिया व BPCL के सौदे जल्द से जल्द करने चाहिए. यह रिटेल इन्वेस्टर्स के बीच उस मेगा LIC IPO के प्रति विश्वास पैदा करेगा जिसकी योजना इस वित्तीय वर्ष में बनाई गई है.
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के साल 1999 और 2004 के बीच कार्यकाल के दौरान 180 सांसदों के साथ सरकार ने बाल्को, BSNL, हिंदुस्तान जिंक और ITDC होटल्स के निजीकरण को आगे बढ़ाया. मौजूदा सरकार को एक निर्णायक कदम उठाना चाहिए और दोनों बड़े सौदे जल्द से जल्द निपटाने चाहिए. यह न केवल अपनी गर्दन के चारों ओर से छुटकारा पाने में मदद करेगा बल्कि इन दोनों कंपनियों की विशाल संपत्ति का कुशल उपयोग भी करेगा. अंतिम लेकिन कम से कम, सफल विनिवेश से ऐसी कंपनियों के प्रबंधन से बाहर निकलने और देश में अधिक इन्वेस्टर्स को आकर्षित करने में सरकार की ईमानदारी को प्रदर्शित भी करेगा.