जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2016 में उज्ज्वला योजना की घोषणा की, तो उन्होंने रसोई में चूल्हे के धुएं के बीच खाना पकाने की देश की करोड़ों महिलाओं की परेशानी को समाप्त करने का संकल्प भी लिया था. इस योजना ने अब तक 8 करोड़ परिवारों को लाभान्वित किया है और वर्तमान में चल रहे योजना के दूसरे संस्करण में अन्य 1 करोड़ परिवारों को लक्षित किया गया है.
यह तो सच है कि लाभार्थी परिवारों को इस योजना से फायदा मिला है, लेकिन सरकार की नीति में बदलाव आया है, जिसमें रसोई गैस सिलेंडरों पर मिलने वाली सब्सिडी को चुपचाप समाप्त कर दिया है. नतीजतन, 14.2 किलोग्राम वाला एलपीजी सिलेंडर, जिसकी कीमत 2014 में 400 रुपये के करीब थी, वह अब लगभग 900 रुपये का हो गया है.
इस सिलेंडर की कीमत पिछले साल सितंबर में लगभग 620 रुपये थी. इसका मतलब है कि रसोई गैस सिलेंडर की कीमत में एक साल में लगभग 45% का इजाफा हुआ है. यह कीमत गरीब परिवारों के बजट से परे है और ऐसी खबरें आ रही हैं कि उज्जवला योजना के कई लाभार्थी फिर से खाना पकाने के लिए लकड़ी और कोयले का इस्तेमाल कर रहे हैं. परिणामस्वरूप महिलाओं को फिर से परेशानियों को सामना करना पड़ रहा है.
देश के सभी लोगों को सब्सिडी देने का भी कोई मतलब नहीं है, लेकिन निचले तबके के परिवारों को सब्सिडी का लाभ दिया जाना जरूरी है. विभिन्न अनुमानों में कहा गया है कि एलपीजी सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करके सरकार ने 20,000 करोड़ रुपये से अधिक की बचत की है. लेकिन सब्सिडी को सीमित तरीके से फिर से शुरू करने की जरूरत है. वित्तीय समावेशन कार्यक्रम के पूरी गति से आगे बढ़ने के साथ अब सब्सिडी को जरूरतमंदों तक पहुंचाना आसान हो गया है. राजस्व में उछाल के साथ सरकार को सब्सिडी के पात्र लोगों को अधर में नहीं छोड़ना चाहिए. हमारी महिलाएं धुएं से भरी रसोई के अत्याचार के लायक नहीं हैं.