कई बार हम सोचते हैं कि सरकार इतना खर्च करती है, इसका हिसाब कौन रखता है. और कहीं खर्च में गड़बड़ी हो जाए तो कौन जांच करता है. इस सबकी जिम्मेदारी नियंत्रक और महालेखापरीक्षक की होती है. आइए जानते हैं क्या होती हैं इस पद की शक्तियां और कार्य.
कितना महत्वपूर्ण है यह पद
संविधान सभा में भीमराव अंबेडकर ने इस पद का महत्व बताते हुए कहा था कि “भारत का नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (CAG-कैग) संभवतः भारत के संविधान का सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकारी है. वह ऐसा व्यक्ति है जो यह देखता है कि संसद द्वारा अनुमति प्राप्त खर्चों की सीमा से अधिक धन खर्च न होने पाए या संसद द्वारा विनियोग अधिनियम में निर्धारित कामों पर ही धन खर्च किया जाए.” इसी को देखते हुए इस का स्वायत्त रखा गया है.
कैग की स्वायत्तता
CAG की स्वतंत्रता भी बरकरार रहे इसके लिए संविधान में कई प्रावधान किये गए हैं. इस अधिकारी को राष्ट्रपति की सील और वारंट द्वारा नियुक्त किया जाता है और इसका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक होता है(दोनों में से जो भी पहले हो). CAG को राष्ट्रपति द्वारा केवल संविधान में दर्ज प्रक्रिया के अनुसार ही हटाया जा सकता है, जिसकी प्रक्रिया सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के समान है. एक बार CAG के पद से सेवानिवृत्त होने/इस्तीफा देने के बाद वह भारत सरकार या किसी भी राज्य सरकार के अधीन किसी भी कार्यालय का पदभार नहीं ले सकता है. इसके अलावा CAG का वेतन और अन्य सेवा शर्तें नियुक्ति के बाद बदली या कम नहीं की जा सकतीं. CAG के कार्यालय का प्रशासनिक व्यय, जिसमें सभी वेतन, भत्ते और पेंशन शामिल हैं, भारत की संचित निधि से किए जातें हैं, जिन पर संसद में मतदान नहीं हो सकता है.
CAG के कार्य और शक्तियां
CAG भारत की संचित निधि और प्रत्येक राज्य, केंद्रशासित प्रदेश जिसकी विधानसभा होती है, की संचित निधि से संबंधित खातों के सभी प्रकार के खर्चों का परीक्षण करने का अधिकार रखता है. भारत की आकस्मिक निधि और भारत के सार्वजनिक खाते के साथ-साथ प्रत्येक राज्य की आकस्मिक निधि और सार्वजनिक खाते से होने वाले सभी खर्चों का समय-समय पर परीक्षण करता है. केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के किसी भी विभाग के सभी ट्रेडिंग, विनिर्माण, लाभ- हानि खातों, बैलेंस शीट और अन्य अतिरिक्त खातों का ऑडिट करने का जिम्मा भी CAG पर ही होता है.
संबंधित कानूनों द्वारा आवश्यक होने पर वह केंद्र या राज्यों के राजस्व से वित्तपोषित होने वाले सभी निकायों, प्राधिकरणों, सरकारी कंपनियों, निगमों और निकायों की आय-व्यय का परीक्षण करता है. राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा अनुशंसित किये जाने पर किसी अन्य प्राधिकरण के खातों का ऑडिट करना भी CAG के जिम्मे होता है और केंद्र और राज्यों के खाते जिस प्रारूप में रखे जाएंगे, उसके संबंध में राष्ट्रपति को सलाह देता है. CAG केंद्र सरकर के खातों से संबंधित अपनी ऑडिट रिपोर्ट को राष्ट्रपति को सौंपता है, जिसे संसद के दोनों सदनों के पटल पर रखी जाती है. किसी राज्य के खातों से संबंधित CAG अपनी ऑडिट रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपता है, जिसे राज्य विधानमंडल के समक्ष रखा जाता है. इसके अलावा CAG संसद की लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee) के मार्गदर्शक, मित्र और सलाहकार के रूप में भी कार्य करता है.
कहां से मिली हैं CAG को इतनी शक्तियां CAG को विभिन्न नियमों से ऑडिट करने के अधिकार प्राप्त हैं, जैसे-
संविधान का अनुच्छेद 148 से 151 नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (कर्त्तव्य, शक्तियाँ और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1971 सर्वोच्च न्यायालय के महत्त्वपूर्ण निर्णय भारत सरकार के निर्देश लेखा और लेखा-परीक्षा विनियम, 2017
CAG और लोक लेखा समिति
लोक लेखा समिति भारत सरकार अधिनियम, 1919 के तहत गठित एक स्थायी संसदीय समिति है. इसके अलावा CAG की ऑडिट रिपोर्ट केंद्र और राज्य में लोक लेखा समिति को सौंपी जाती है. विनियोग खातों, वित्त खातों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों पर ऑडिट रिपोर्ट की जांच लोक लेखा समिति द्वारा की जाती है. वहीं केंद्रीय स्तर पर इन रिपोर्टों को CAG द्वारा राष्ट्रपति को प्रस्तुत किया जाता है, जो संसद में दोनों सदनों के पटल पर रखी जाती हैं. CAG सबसे जरूरी मामलों की एक सूची तैयार करके लोक लेखा समिति को सौंपता है. CAG यह देखता है कि उसके द्वारा प्रस्तावित सुधारात्मक कार्रवाई की गई है या नहीं. यदि नहीं तो वह मामले को लोक लेखा समिति के पास भेज देता है जो मामले पर आवश्यक कार्रवाई करती है.
(यह खबर न्यूज एजेंसी पीबीएनएस से ली गई है)
पर्सनल फाइनेंस पर ताजा अपडेट के लिए Money9 App डाउनलोड करें।