जंगल में शिकार पर निकले शिकारी जानते हैं कि बाघ को देखकर सबसे ज्यादा शोर लंगूर मचाते हैं. वे अपने कान उन्हीं की आवाज पर लगाए रहते हैं और पता लगा लेते हैं कि घने जंगल के किस कोने में बाघ है. इसी तरह अर्थव्यवस्था जब सुस्त पड़ जाती है, तो इकनॉमिस्ट भी कुछ संकेतों पर नजर टिकाए रहते हैं जिनसे सुधार का पता चलता है. इन्हीं इंडिकेटर्स में से एक है क्रेडिट ऑफटेक.
बैंकों ने चालू वित्त वर्ष की सितंबर तिमाही में इंडस्ट्री से अधिक पर्सनल लोन दिए. यह एक पक्का संकेत है कि बैंकों ने रिटेल लोन, यानी घर, गाड़ी, सामान खरीदने के लिए लिए जाने वाले कर्ज को अच्छे से बढ़ावा दिया. ब्याज दरें घटने, आक्रामकता से हुई मार्केटिंग और कुछ हद तक उपभोक्ताओं का खर्चे पर हाथ खुलने से ऐसा हो पाया है.
हालांकि, इन आंकड़ों में एक चिंता की बात भी झलक रही है. इंडस्ट्री ने हमेशा रिटेल सेगमेंट से अधिक कर्जी की मांग की है. दूसरी तिमाही में कंपनियों ने उत्पादन क्षमताएं बढ़ाने के लिए ज्यादा कर्ज नहीं लिए. उनकी प्रॉडक्शन कैपेसिटी बढ़ना जरूरी है क्योंकि उससे रोजगार सृजन होता है.
कोरोना महामारी के कारण नौकरियों की तंगी हुई है. लाखों लोगों के वेतन में कटौती हुई है. अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सस्टेनेबल एंप्लॉयमेंट के एक शोध के अनुसार, कोरोना की पहली लहर ने करीब 23 करोड़ भारतीयों की आय को नेशनल डेली मिनिमम वेज (375 रुपये) से नीचे गिरा दिया है.
जब तक कंपनियों की ओर से कैपिटल एक्सपेंडिचर की जरूरत नहीं बढ़ती, तब तक रोजगार सृजन नहीं होगा. नौकरियां बढ़ने से मांग में बढ़ोतरी होगी. ऐसा नहीं होने पर रिटेल सेगमेंट की ओर से कर्ज की मांग भी घट सकती है.
एक और असमंजस की बात है. कर्ज सस्ता करने के लिए सरकार और RBI ने लगातार ब्याज दर घटाने पर जोर दिया है. इससे सेविंग्स इंस्ट्रूमेंट्स के रेट भी घटते हैं, जो आम जनता के लिए इंटरेस्ट इनकम बनाते हैं. याद होगा कि केंद्र ने अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए कॉरपोरेट टैक्स के जरिए होने वाली लगभग 1.5 लाख रुपये की कमाई से हाथ पीछे खींचे थे. सभी ने अपने स्तर पर बलिदान दिए हैं.
कई भारतीय कंपनियों ने वित्त वर्ष 2021 में अच्छे नतीजे दर्ज किए हैं. वे अभी भी अच्छी हालत में नजर आ रही हैं. ऐसी कंपनियों को क्षमता बढ़ाने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए. साफ बैलेंस शीट होने से आगे आनी वाली मांग के लिए तैयार होने का अच्छा मौका बनता है.
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