अमीरों को छोड़ बाकी सभी भारतीयों के लिए दो तरह से तेल झटका दे रहा है. जहां एक श्रेणी का तेल गाड़ियों को चलाता है तो वहीं दूसरा घर की रसोई को चलाता है. इन दोनों ही तरह के तेल (Oil Rate) में पिछले कई महीनों से आग लगी हुई है, जिससे आम आदमी की जेब पर भारी दबाव भी पड़ा है. तेल की बढ़ती कीमतों (Oil Rate) ने खुदरा मुद्रास्फीति के संवेदनशील आंकड़े तक को प्रभावित किया है. देश दोनों ही तरह के तेल की घरेलू खपत पूरा करने के लिए आयात पर गंभीर रूप से निर्भर है. हालांकि इन कीमतों में वृद्धि को लेकर सरकार की प्रतिक्रिया काफी अलग है.
शनिवार को सरकार ने तेल की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के लिए खाद्य तेलों पर आयात शुल्क को कम करते हुए इसे दशकों के निचले स्तर पर ला दिया है. चार महीने में यह दूसरी बार है जब सरकार ने इंपोर्ट ड्यूटी में कटौती की हो. इससे सभी वेजिटेबल ऑयल जैसे पाम, सूरजमुखी और सोयाबीन की रिटेल कीमतों में कमी जरूर आएगी.
हालांकि डीजल-पेट्रोल की कीमतों पर प्रशासन चुप है जो आम आदमी को अन्य किसी वस्तु की तुलना में सबसे अधिक नुकसान पहुंचा रही है. पेट्रोल की कीमत में वृद्धि होती है तो इसका असर वाहन स्वामियों के बटुए तक ही सीमित है जबकि डीजल की कीमत में वृद्धि पूरी अर्थव्यवस्था में फैलती है क्योंकि इससे चलने वाले वाहन लंबी दूरी तक सभी तरह की वस्तुओं को लाते ले जाते हैं.
दुनिया में पेट्रोल और डीजल पर सबसे ज्यादा टैक्स हमारे देश में लगता है और इससे मिलने वाला रेवेन्यू फाइनेंशियल ईयर 2022 के बजट अनुमानों से अधिक हो गया है. केंद्र और राज्य सरकारों को साथ मिलकर इसके खर्च को पूरा करने के लिए राजस्व आधार को गहरा एवं व्यापक बनाने के लिए स्थायी तरीकों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.
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