कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) ने दिवालिया हो चुकी इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस एंड लीजिंग लिमिटेड (IL&FS) और दीवान हाउसिंग फाइनेंस कॉर्प लिमिटेड (DHFL) में डूबे लगभग 1,400 करोड़ रुपये की वसूली के लिए संघर्ष करने के बाद अपने बॉन्ड निवेश की निगरानी के लिए एक सलाहकार नियुक्त करने का प्रस्ताव दिया है. शुक्रवार को राज्यसभा में श्रम पर स्थायी संसदीय समिति की ओर से पेश की गई एक रिपोर्ट में बताया गया कि उसने EPFO के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है. साथ ही उसने इस कदम में देरी किए जाने पर नाराजगी भी जताई है.
थर्ड पार्टी एडवाइजर की नियुक्ति की मांग
बीजू जनता दल के सांसद भर्तृहरि महताब की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट में कहा गया है, “समिति इस बात की सराहना करती है कि समीक्षा की प्रक्रिया को और सख्त बनाने के लिए EPFO के केंद्रीय बोर्ड ने मौजूदा सलाहकार के अलावा एक तीसरे पक्ष के सलाहकार की नियुक्ति की भी सिफारिश की है. समिति को विश्वास है कि तीसरे पक्ष के सलाहकार को अब नियुक्त किया जाना चाहिए, ताकि किए गए निवेशों के मजबूत प्रदर्शन की समीक्षा सुनिश्चित की जा सके.”
समिति ने EPFO से इस तरह के मामलों में कंपनियों की दो श्रेणियों में रखने को भी कहा है. पहली कैटेगरी में वे कंपनियां हों, जिनमें EPFO ने निवेश किया है जैसे IL&FS और DHFL. दूसरी कैटेगरी में उन कंपनियों को रखा जाए, जिनके पास कर्मचारियों के अंशदान से मिलने वाली EPFO की रकम बकाया है.
हालांकि, समिति के प्रस्ताव पर EPFO ने अब तक कदम नहीं बढ़ाया है. ऐसे में IL&FS में निवेश किए गए करीब 574 करोड़ रुपये और DHFL में फंसे करीब 800 करोड़ रुपये की वसूली अब भी EPFO की पहुंच से बाहर है. इस बाबत करीब डेढ़ साल पहले 2019-20 में कोरोना वायरस के प्रकोप से पूर्व श्रम मंत्रालय ने प्रस्ताव दिया था कि EPFO को दिवालिया हुई IL&FS और DHFL की संपत्ति पर पहला अधिकार दिया जाए.
क्या चूक गया EPFO?
EPFO के बोर्ड के एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि लगता है कि EPFO ने समय पर काम करने और कर्मचारियों के पैसे की रक्षा करने के अपने कर्तव्य में लापरवाही की है. उन्होंने कहा कि मैं पक्के तौर पर नहीं कह सकता कि EPFO के अधिकारी वाकई उस पैसे को वापस पाने के लिए गंभीर हैं या नहीं.
उन्होंने बताया कि EPFO की निवेश फाइनेंस कमेटी ने हाल के महीनों में अपनी बैठक कम से कम दो बार टाली है. बोर्ड के सदस्य ने कहा कि EPFO में लोगों की आम धारणा यह रहती है कि उनके पास कुल जमा राशि की तुलना में फंसी हुई रकम काफी छोटी रकम है, जिसे वे छोड़ सकते हैं. वे यह भूल जाते हैं कि EPFO कोई प्राइवेट कंपनी नहीं है, जो अपनी मर्जी के मुताबिक इस तरह फंड छोड़ने के फैसले सकती है.
दूसरी ओर, EPFO के एक अधिकारी ने कहा कि वे बाजार नियामक सेबी और विवाद समाधान निकायों में संबंधित अधिकारियों के संपर्क में हैं, ताकि इन फर्मों में फंसी रकम वापस मिल सके.
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