भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है. इसकी इकोनॉमिक ग्रोथ एनर्जी डिमांड से संबंधित है. तेल आयात में कमी और ग्रीन हाइड्रोजन (green hydrogen) के निर्यात से देश की अर्थव्यवस्था को 2047 तक पांच लाख करोड़ डॉलर पहुंचाने में मदद मिल सकती है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर कहा था कि ग्रीन हाइड्रोजन और अन्य ग्रीन फ्यूल इनिशिएटिव के साथ, भारत अंग्रेजों से आजादी मिलने के सौ साल बाद 2047 तक एनर्जी इंडिपेंडेंस प्राप्त कर सकता है. ये सब कैसे हो सकता है, आइए जानते हैं.
जब इंडियन फ्यूल इकोनॉमी की बात आती है तो रिलायंस के चेयरमैन मुकेश अंबानी का ग्रीन हाइड्रोजन पर दांव गेम चेंजर हो सकता है. हाइड्रोजन ऐसा फ्यूल है, जिसे सरकार सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रही है.
रिलायंस इंडस्ट्रीज 5,87,999 करोड़ की वैल्यू के साथ देश की सबसे बड़ी निजी क्षेत्र की कंपनी है. इसके राजस्व का बड़ा हिस्सा हाइड्रोकार्बन क्षेत्र से आता है- पेट्रोलियम प्रॉडक्ट, ऑयल एक्सप्लोरेशन और पेट्रोलियम रिफाइनिंग एंड मार्केटिंग. ऐसे में जब इसके चेयरमैन मुकेश अंबानी कहते हैं कि कंपनी ग्रीन हाइड्रोजन और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में भारी निवेश करेगी, तो यह बात नोटिस की जाती है.
TOI की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रिलायंस ने ग्रीन एनर्जी में 75,000 करोड़ रुपये के शुरुआती निवेश की योजना बनाई है. कंपनी ने पहले से ही सोलर सेल्स और पैनल के उत्पादन के लिए विशाल प्लांट स्थापित करना शुरू कर दिया है. इसके साथ ही ग्रीन हाइड्रोजन प्लांट स्थापित किया जा रहा है.
ग्रीन हाइड्रोजन को किफायती बनाना न केवल पर्यावरण के लिए अच्छा होगा, बल्कि अंबानी की संपत्ति को बढ़ाने में भी इसका बड़ा योगदान हो सकता है. उन्होंने Jio की सफलता के लिए भी इसी स्ट्रेटजी को अपनाया था. कम शुल्क के कारण कंपनी को 4.4 करोड़ का कस्टमर बेस मिला.
हाइड्रोजन फ्यूल को अगर इंडस्ट्री, विशेष रूप से ऑटोमोटिव सेक्टर अपनाता है, तो यह भारत को ऊर्जा-अधिशेष देश बना सकता है. आज तेल पर निर्भरता के कारण हमारे पास ऊर्जा की कमी है. हरित ऊर्जा के पर्याप्त उत्पादन से भारत ऊर्जा निर्यातक देश भी बन सकता है.
तेल पर निर्भरता में कटौती का अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा. ऐसा इसलिए कि जैसे-जैसे तेल की वैश्विक कीमतें बढ़ती हैं, भारत का इंपोर्ट बिल बढ़ जाता है. चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में देश का कच्चे तेल का आयात 190 प्रतिशत बढ़कर 24.7 अरब डॉलर हो गया.
तेल के आयात में कमी और ग्रीन हाइड्रोजन का निर्यात बढ़ने से देश की अर्थव्यवस्था को 2047 तक पांच लाख करोड़ डॉलर तक पहुंचाने में मदद मिल सकती है.
तेल या गैस की तरह, हाइड्रोजन एक एनर्जी कैरियर है. यह ऊर्जा का भंडारण करता है. फिर जरूरत पड़ने पर इसे छोड़ता है. पेट्रोल की तुलना में यह तीन गुना अधिक ऊर्जा स्टोर कर सकता है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि जब हाइड्रोजन संग्रहित ऊर्जा (इंजन या बैटरी में) को छोड़ता है, तो वह एकमात्र उत्सर्जन पानी पैदा करता है.
फ्यूल सोर्स के रूप में हाइड्रोजन कोई नई खोज नहीं है. इसे लंबे समय से भविष्य के सबसे टिकाऊ ईंधनों में से एक के रूप में देखा गया है, जो प्रचुर मात्रा में मौजूद होने के साथ नॉन-पल्यूटिंग है. हालांकि, हाइड्रोजन ईंधन का उत्पादन महंगा रहा है. इसके लिए बिजली की आवश्यकता होती है, इसलिए उत्पादन प्रक्रिया स्वयं ग्रीन नहीं रही है.
ऐसा इसलिए है क्योंकि अधिकांश देश थर्मल पावर प्लांट में उत्पादित बिजली का उपयोग करते हैं. इसका अर्थ हुआ कि वे बिजली पैदा करने के लिए कोयले या प्राकृतिक गैस का उपयोग करते हैं. ये प्रदूषण बढ़ाने वाले नॉन सस्टेनेबल फ्यूल हैं.
हाइड्रोजन फ्यूल को प्रोड्यूस करने के कई अलग तरीके हैं. सबसे आम स्टीम रिफॉर्मेशन, इलेक्ट्रोलिसिस, सोलर और बायोलॉजिकल हैं. उत्पादन के तरीके के आधार पर हाइड्रोजन फ्यूल को एक रंग दिया जाता है. ग्रे हाइड्रोजन, ब्लू हाइड्रोजन और ग्रीन हाइड्रोजन.
एक किलो ग्रे हाइड्रोजन को प्रोड्यूस करने में करीब 1-2 डॉलर का खर्च आता है. ब्लू हाइड्रोजन के लिए भी यह खर्च इतना ही है. वहीं ग्रीन हाइड्रोजन के लिए 4 डॉलर प्रति किलोग्राम का खर्च आता है. ग्रीन प्रोसेस हाइड्रोजन के उत्पादन का सबसे स्वच्छ तरीका है. यह अक्षय ऊर्जा का उपयोग करता है.
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