इंडिया डेट एंड इन्वेस्टमेंट सर्वे (AIDIS) की हाल में पेश की गई रिपोर्ट का कहना है कि देश के ग्रामीण और शहरी परिवारों के औसत कर्ज में बढ़ोतरी हुई है. साल 2012-18 के बीच रूरल और अर्बन हाउसहोल्ड के डेट (household debt) में औसतन क्रमशः 84 प्रतिशत और 42 फीसदी की वृद्धि हुई है.
रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 18 राज्यों में इस दौरान ग्रामीण परिवारों का एवरेज डेट (average household debt) दोगुना से अधिक हुआ है. वहीं सात राज्यों में शहरी परिवारों के कर्ज में इस स्तर की बढ़ोतरी देखने को मिली है. महाराष्ट्र, राजस्थान और असम सहित पांच राज्यों में दोनों क्षेत्रों के हाउसहोल्ड का एवरेज डेट दोगुना हुआ है.
कोरोना महामारी के कारण GDP रेट के एवज में परिवारों का कर्ज बढ़ा है. SBI की इकोरैप रिपोर्ट (Ecowrap report) के मुताबिक, 2020-21 में यह तेज उछाल के साथ 37.3 प्रतिशत पहुंच गया. 2019-20 के दौरान यह 32.5 फीसदी पर था. ब्यूरो ऑफ इंडिया स्टैंडर्ड्स (BIS) का दिसंबर 2020 के लिए अनुमान 37.7 पर्सेंट पर है.
रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2022 की पहली तिमाही में GDP के पर्सेंटेज के लिहाज से हाउसहोल्ड डेट 34 प्रतिशत घटा है. इस दौरान GDP में वृद्धि हुई है. इससे अनुमान लगाया जा रहा है कि 2018 के स्तर से 2021 में हाउसहोल्ड डेट दोगुना हुआ होगा.
परिवारों पर कितना कर्ज है, इसका अनुमान डेट-एसेट रेशियो (debt-asset ratio) लगाया जाता है. ग्रामीण परिवारों के लिए यह रेशियो 2018 में 3.8 पर पहुंच गया, जो 2012 में 3.2 था. अर्बन हाउसहोल्ड 3.7 से बढ़कर 4.4 हो गया है. केरल, मध्य प्रदेश और पंजाब तीन ऐसे राज्य रहे जिनके डेट-एसेट रेशियो में 2012 से 2018 के दौरान कम से कम 100 बेसिस पॉइंट की गिरावट आई.
अच्छी खबर यह है कि रूरल इंडिया में नॉन-इंस्टिट्यूशनल क्रेडिट एजेंसियों (non-institutional credit agencies) का आउटस्टैंडिंग कैश डेट (outstanding cash debt) 2018 में घटकर 34 प्रतिशत हो गया, जो 2012 में 44 फीसदी था. लगभग सभी राज्यों के इस कर्ज में गिरावट हुई है. इससे अर्थव्यवस्था में फॉर्मेलाइजेशन बढ़ रहा है.
बिहार, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, हरियाणा और गुजरात के नॉन-इंस्टिट्यूशनल क्रेडिट में सबसे अधिक कटौती हुई है. हरियाणा और राजस्थान में लोन वेवर स्कीम्स चलाए जाने के बावजूद इस कर्ज में गिरावट हुई है.
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