एक पुरानी कहावत है कि एक महिला ही मकान को घर बनाती है. जो लोग महिलाओं की आजादी की बात करते हैं शायद उन्हें ये बात अच्छी नहीं लगेगी. हालांकि, वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर होने की प्रवृत्ति अब भारत की महिलाओं में काफी गहरे तक पैठ कर गई है. इसी के साथ ही बड़े तौर पर महिलाएं एक नए होममेकिंग रोल में आती हुई दिखाई दे रही हैं. ये महिलाएं अब ज्यादा घर खरीद रही हैं और बड़े घर खरीद रही हैं.
रियल एस्टेट कंपनियों का कहना है कि ज्यादा से ज्यादा महिलाएं अब घर खरीद रही हैं और इनमें से कुछ 3-4 बेडरूम वाले बड़े घरों को पसंद कर रही हैं.
बड़े घरों की इनक्वायरीज और सेल्स में कोविड के बाद तेजी आई है. वर्क फ्रॉम होम और घर से ही स्कूलिंग के चलते भी इस ट्रेंड में इजाफा हो रहा है. एक बड़े ऑनलाइन होम मार्केटप्लेस बैंकबाजार ने भी बताया है कि महिलाएं ज्यादा बड़े होम लोन ले रही हैं और इनका एवरेज टिकट साइज सालाना आधार पर 7.4 फीसदी बढ़कर 32 लाख रुपये पर पहुंच गया है. कई बैंक महिलाओं को रियायती दर पर होम लोन और ऑटो लोन ऑफर कर रहे हैं.
हालांकि, ये एक शहरी मध्यवर्ग ट्रेंड लग सकता है, लेकिन महिला सशक्तिकरण की पहचान इन चीजों से भी होती है. फाइनेंशियल इनक्लूजन की मुहिम से महिला सशक्तिकरण को बल मिला है.
कुछ राज्यों में परिवार की महिला सदस्यों के नाम पर हेल्थ इंश्योरेंस कार्ड भी जारी हुए हैं. डायरेक्ट कैश असिस्टेंस से भी महिला सदस्यों को मजबूती मिली है.
एक बेहद पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं का सशक्तिकरण आसान बात नहीं है और भारतीय नीति निर्धारकों की इस बात के लिए तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होंने न सिर्फ मध्यम वर्ग, बल्कि हाशिये पर मौजूद महिलाओं के लिए भी इस तरह के प्रोग्राम तैयार किए हैं जिनमें महिलाओं को संपत्ति पर हक लेने के लिए प्रोत्साहन मिला है. इससे परिवारों में महिलाओं की बात अब ज्यादा गंभीरता से सुनी जाने लगी है.
महिलाओं को अधिकार दिलाना आसान नहीं है. स्विस महिलाओं को फेडरेल लेवल पर वोट का अधिकार हासिल करने के लिए 1971 तक इंतजार करना पड़ा था.