आधुनिक समाज की प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल्स के सामने लंबे वक्त से कई मुश्किलें रही हैं और इन्हें लेकर हमेशा से बहस जारी रही है. हेल्थकेयर का खर्च भी ऐसा ही एक बड़ा मसला है. राज्य बढ़ती मांग के मुकाबले हेल्थकेयर सुविधाएं मुहैया कराने में नाकाम रहा है, ऐसे में निजी कंपनियों ने इस गैप को पूरा किया है. दुर्भाग्य से निजी सेक्टर के अस्पतालों के खिलाफ लगातार आ रही शिकायतें इनके आम लोगों से भारी-भरकम बिलों को वसूले जाने से जुड़ी हुई हैं और आम लोग अक्सर इस बोझ से दबे हुए नजर आते हैं.
इस हफ्ते ओवरबिलिंग के एक कथित मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मरीजों के ऊपर लादे जाने वाले ऊंचे खर्चों पर चिंता जाहिर की है. आम लोगों का ये अनुभव रहा है कि आधुनिक अस्पतालों में इलाज का खर्च उठाना उनके बूते की बात नहीं है. ऐसी कई भयानक कहानियां हमने सुनी हैं जिनमें मरीजों और उनके परिवारीजनों को भारी-भरकम बिल चुकाने के लिए मजबूर किया गया है.
यहां तक कि ऐसे भी उदाहरण हैं जिनमें अस्पतालों ने मरीजों के शवों को बिलों के भुगतान होने तक बंधक बना लिया. ये निश्चित तौर पर अमानवीय है.
अस्पतालों का खर्च कई देशों में विवाद का विषय रहा है. हालांकि, भारत में कई राज्यों और केंद्र सरकार ने बड़ी संख्या में अस्पताल बनाए हैं, लेकिन निजी सेक्टर के अस्पतालों की जरूरत लगातार बनी हुई है.
इन अस्पतालों के लिए सरकार रियायती दर पर जमीन देती है ताकि ये आम लोगों की सेवा कर सकें. लेकिन, एक बार अस्पताल तैयार होने के बाद कम ही ऐसा होता है जबकि अस्पताल गरीब मरीजों के लिए तय संख्या में बेड रिजर्व रखते हों.
साथ ही ये अस्पताल बेपरवाह होकर ऊंचा बिल वसूलते हैं. हालांकि, कुछ राज्यों ने ओवरबिलिंग के खिलाफ नियम बनाए हैं, लेकिन ज्यादातर अस्पताल मरीजों से मनमाना पैसा वसूलते हैं और इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती है.
दवाएं, कंज्यूमेबल्स, डॉक्टर कंसल्टेशन फीस, रेडियोलॉजिकल और पैथोलॉजिकल टेस्ट जैसे मदों में लोगों को लूटा जाता है. इनवेस्टर्स को इसमें मुनाफा होता है और आम लोगों को निराशा हाथ लगती है.
कोई भी सरकार जो कि हेल्थकेयर की इस परेशानी का स्ट्रक्चरल समाधान ला सके उसे मानवीय जीवन के लिए एक बड़ी उपलब्धि माना जाएगा.