आपदाएं आती हैं तो बड़े बदलाव कर के जाती हैं. कोरोना काल में भी यही हो रहा है. राज्य सभा में 30 जुलाई को बताए गए आंकड़ों के मुताबिक, स्टार्टअप्स रोजगार के अवसर बढ़ा रहे हैं. वहीं, ट्रेडिशनल सेक्टरों पर महामारी की बुरी मार पड़ी है. साल 2018, 2019 और 2020 में स्टार्टअप्स ने क्रमशः 95,825, 144,682 और 171,930 नौकरियां पैदा की थीं. इस साल 21 जुलाई तक यह आंकड़ा 115,080 पर रहा.
स्टार्टअप्स की ऊंची उड़ान के संकेत सबसे ज्यादा स्टॉक मार्केट से मिल रहे हैं. बाजार में इन कंपनियों ने धूम मचा रखी है. निवेशकों से मिल रहे समर्थन से वे तेजी से पैसे जुटा रही हैं. बीते सात महीनों में 28 कंपनियां IPO के जरिए 42 हजार करोड़ रुपये से अधिक जुटा चुकी हैं. करीब तीन दर्जन फर्मों ने अपने IPO लाने के लिए सेबी के पास आवेदन भेजे हुए हैं. रिपोर्ट्स के मुताबकि, लगभग 50 और कंपनियां इस साल निवेश जुटाने की योजना बना रही हैं. इनमें से ज्यादातर स्टार्टअप्स हैं.
निवेश से जुटाई जा रही राशि का ज्यादातर हिस्सा कंपनियां विस्तार के लिए क्षमता और मैनपावर बढ़ाने में इस्तेमाल करेंगी. स्टार्टअप्स में आई यह बूम ऐसे समय पर है जब अर्थव्यवस्था पटरी से उतरने की वजह से कइयों की नौकरियां गई हैं. कइयों के वेतन में कटौती हुई है.
महामारी से बने चिंता वाले माहौल और तीसरी लहर के संकट के बीच कुछ सेक्टरों में भर्तियां बढ़ी हैं. नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लाइज इकॉनमिक रिसर्च के सर्वे के मुताबिक, देश के पश्चिमी भाग में बिजनेस सेंटिमेंट इंडेक्स बढ़ा है. कोरोना से बुरी तरह प्रभावित रहे मई के महीने में फॉर्मल सेक्टर के रोजगार में पश्चिम भारत की हिस्सेदारी लगभग एक-तिहाई थी.
रोजगार सृजन के मामले में स्टार्टअप्स किसी वरदान जैसे साबित हो सकते हैं. कुछ उसी तरह जैसे ’90 और उसके अगले दशक में आईटी और टेलिकॉम सेक्टरों ने खूब नौकरियां पैदा की थीं. सरकारों को नीतियों के जरिए स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने की जरूरत है. तकनीक के सहारे आगे बढ़ने वाले स्टार्टअप्स के साथ अच्छी बात यह है कि उन्हें जमीन, बिजली, पानी जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर सपोर्ट की ज्यादा जरूरत नहीं होती. सरकारों को आगे आकर स्टार्टअप्स को सहारा देना होगा.
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