पिछली बार कब एक तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के लिए वृद्धि दर 20.1 फीसदी दर्ज की गई थी? शायद कभी नहीं. पहली तिमाही के लिए विकास दर शानदार लग सकती है लेकिन पिछले साल अप्रैल से जून के दौरान इस बढ़ोतरी की तुलना करें तो पता चलता है कि यह कम आधार प्रभाव द्वारा संचालित थी. वह भी उस समय, जब देश में कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन लगा था. अधिकांश क्षेत्र कृषि (4.5%), विनिर्माण (49.6%), निर्माण (88.3), खनन (18.6%) और बिजली उत्पादन (14.3%) ने इस साल उम्मीदों के अनुरूप प्रदर्शन किया. हालांकि कुछ सेक्टर यह बढ़ोतरी पाने में विफल भी रहे हैं.
एक्सपर्ट्स का मानना है कि प्रोडक्शन में वृद्धि के लिए घरेलू खपत पिछड़ी है और इसे अभी अर्थव्यवस्था का चालक बनना बाकी है. वहीं एक्सपोर्ट ने अच्छा प्रदर्शन किया है, जो GDP का लगभग 20% है. हालांकि, समीक्षकों का मानना है कि घरेलू खपत के कमजोर प्रदर्शन के कारण एक्सपोर्ट अधिक था, जबकि मांग में वृद्धि और तीसरी लहर साल के बाकी बचे दिनों में अर्थव्यवस्था की बढ़ोतरी के साधन बन सकते हैं.
शायद प्रदर्शन में सबसे अच्छा स्थान टैक्स कलेक्शन का रहा है. अप्रैल-जुलाई की अवधि में टैक्स कलेक्शन फाइनेंशियल ईयर 2020 की पहली तिमाही में 3.39 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 5.29 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया. 2019 और 2022 की पहली तिमाही के बीच सरकार के खर्च में वृद्धि लगभग 0.5 लाख करोड़ रुपये थी.
जबकि 20.1% ग्रोथ का आंकड़ा मोटे तौर पर फाइनेंशियल ईयर 2021 में पहली तिमाही के लो बेस के चलते है. हालांकि, इससे सरकार को एक मौका मिला है कि वह ऐसी नीतियों को तैयार करे जिससे तेज ग्रोथ का माहौल तैयार हो सके. यदि उपभोक्ता सेंटीमेंट में सुधार होता है और कुल मांग बढ़ती है तो विकास की गति अगली तिमाहियों में भी जारी रह सकती है.
हालांकि, नीति निर्माताओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विभिन्न क्षेत्रों में विकास यथासंभव समान हो और रोजगार पैदा हों, जो कि सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए. रेवेन्यू में उछाल के साथ नीति निर्माता बुनियादी ढांचे में रोजगार पैदा करने और आर्थिक संपत्ति बनाने के लिए भी खर्च कर सकते हैं.