वित्त वर्ष 2022 की पहली तिमाही में GDP के सालाना आधार पर 20.1 प्रतिशत की ग्रोथ दर्ज करने से अर्थव्यवस्था को अब तक हुए भारी नुकसान की कुछ भरपाई हुई है. अर्थव्यवस्था फिलहाल वित्त वर्ष 2020 की पहली तिमाही के स्तर तक तो नहीं पहुंच सकी है, लेकिन यह कहा जा सकता है विकास को बढ़ावा देने वाली नीतियों की मदद से ट्रैक पर लौट आई है.
नीति निर्माता ग्रोथ पर जोर देने वाली रणनीतियों पर काम करते रहने वाले हैं, मगर अब उन्हें रोजगार सृजन को प्राथमिकता देनी चाहिए. विकास के कोई मायने नहीं रह जाएंगे, अगर जॉबलेस ग्रोथ होती रही.
अर्थव्यवस्था जितनी रफ्तार से रोजगार के आंकड़े नहीं बढ़ पा रहे हैं. CMIE के आंकड़े बताते हैं कि अगस्त में बेरोजगारी दर में बढ़ोतरी हुई है. जबकि इसी माह इकॉनमी ने रफ्तार पकड़ी है. कोरोना की दूसरी लहर से सबसे अधिक प्रभावित रहे मई के दौरान बेरोजगारी दर 11.84 प्रतिशत था. जुलाई तक यह घटकर 6.96 फीसदी पर आ गया था. हालांकि, अगस्त में यह फिर बढ़कर 8.32 पर्सेंट हो गया.
बीते कुछ हफ्तों से बेरोजगारी का 30 दिनों का एवरेज भी बढ़ता जा रहा है. सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि अर्थव्यवस्था सुधरने के साथ नौकरी के नए अवसर भी पैदा करे. महंगाई के दौर में जॉबलेस ग्रोथ होने से जनता असहाय हो जाएगी.
अच्छी बात यह है कि सरकार का डायरेक्ट और इनडायरेक्ट कलेक्शन से काफी रेवेन्यू जुटाया है. वित्त वर्ष 2020 की पहली तिमाही की तुलना में खर्च के एवज में सरकार की कमाई कहीं अधिक रही है. इससे इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास पर खर्च करना अधिक मुमकिन हो पाएगा और अर्थव्यवस्था के साथ-साथ रोजगार को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी.
सरकार को बैंकों पर उद्यमियों को कर्ज देने और व्यापक नीतियों का पालन करने का दबाव बनाए रखना होगा. खुद भी थोड़ा हाथ खोलकर खर्च करना होगा. अर्थव्यवस्था के विकास से रेवेन्यू में बढ़त होना तय है. अगर सरकार ने अभी खुल कर खर्च नहीं किया और रोजगार में तेज बढ़त नहीं हुई, तो आगे चलकर कल्याणकारी योजनाओं पर पैसे खर्च करने पड़ जाएंगे.