भारत को वित्तीय रूप से मजबूत बनाने का लक्ष्य इंटरनेट की मदद से अब धीरे-धीरे पूरा होता दिख रहा है. लाभार्थियों को सीधे बेनेफिट ट्रांसफर करने वाली DBT स्कीमों ने बीच में पैसे खा जाने वालों पर लगाम कसी है. लोगों को सरकारी योजनाओं का फायदा मिल पा रहा है.
तकनीक की ताकत का फायदा उठाते हुए हम हरेक को योजनाओं का हिस्सा बना सकते हैं, उन तक सुविधाएं पहुंचा सकते हैं. दूर-दराज के इलाकों तक इंटरनेट की बढ़ती पहुंच इस बात की गवाही दे रही है कि केंद्रीय बैंक भारत के सभी वासियों को वित्तीय सुविधाएं देने पर जोर दे रहा है.
सरकार ने पिछड़े इलाकों तक वाईफाई हॉटस्पॉट और फाइबर-टू-होम जैसी सुविधाएं पहुंचाने की योजना बनाई है. इसके तहत अब तक 13 लाख से अधिक लोगों ने पंजीकरण कराया है. इस साल के अंत तक 20 लाख से ज्यादा घरों को योजना का लाभ मिलने की उम्मीद है.
जून 2021 तक एक लाख से अधिक पंचायतों ने 13 हजार टेराबाइट से ज्यादा के इंटरनेट डेटा का इस्तेमाल किया है. साल 2020 में कुल छह हजार टेराबाइट और 2019 में सिर्फ 300-400 टेराबाइट का इस्तेमाल हुआ था.
तकनीक मौजूद होने के साथ यह भी जरूरी है कि लोगों को डिजिटल तरीके से ट्रांजैक्शन करना आता हो. वे इसके इस्तेमाल में सहज महसूस करें. योजनाएं बनाने और उनका लाभ देने भर से काम नहीं बनेगा. लोगों की वित्तीय समझ भी बढ़ानी होगी.
जमीनी स्तर पर तभी सफलता मिलेगी, जब लगातार और सही दिशा में कोशिश की जाए. वित्तीय रूप से हर किसी को मजबूत बनाने में सेंटर फॉर फाइनेंशियल लिट्रेसी की बड़ी भूमिका है. इसका काम किसानों, महिला कारीगरों और छोटे व्यापारियों को डिजिटल पेमेंट के फायदे बताना है.
वित्तीय समझ होने से लोग अपने पैसे और तमाम सुविधाओं के लिहाज से सही फैसले ले पाते हैं. हमें अगर सुपरपावर बनना है, तो ग्रामीण भारत को साथ लेकर चलना ही होगा.